Aditi Rusia   (Aditi)
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Reiki healer,writer
Joined 23 April 2020


Reiki healer,writer
Joined 23 April 2020
A MINUTE AGO

अंकिता कॉलेज जाने के लिए तैयार होकर कमरे से निकली और वहीं से चिल्ला कर बोली ,माँ क्या बनाया है आज नाश्ते में? कहीं आज फिर वही बची रोटी तो तल कर नहीं खिला रही हो न! आज तो मैं नहीं खाऊँगी पहले से बता रहीं हूँ आपको कह कर टेबल पर बैठ गई।
अंदर रसोई से रमा ने आवाज़ लगी अरे नहीं रे आज तो मैंने तुम्हारे लिए कुछ नया बनाया है। थोड़ी देर में रमा ने चाय के साथ नाश्ता टेबल पर लगा दिया। ये क्या बनाया ,माँ ये तो बहुत ही स्वादिष्ट दिख रहा है कहते हुए बेटे राकेश ने उसकी प्लेट से एक टुकड़ा उठा कर लिया माँ अपने हाथ तो दो इन्हें चूम लूँ ! धत्त रे कहते हुए माँ ने एक चपत लगा दी उसे।
माँ सच में बहुत अच्छा है ये कहते हुए अंकिता ने माँ से कहा कैसे बनाया माँ! रमा ने कहा तुम्हें अच्छा लगा न बस तुम खा लो मुझे ख़ुशी है कि तुम्हें पसंद आया। अब वो उसे कैसे बताती कि आज उसने बची रोटी से ही नाश्ता बनाया है। थैंक्यू माँ लव यू कह अंकिता कॉलेज चली गई। रमा सोचने लगी कभी कभी बच्चों से झूठ बोलना भी अच्छा होता है। कुछ भी तो नहीं किया बस उबले आलू और कैचप लगा कर थोड़ा बेसन ऊपर से डाल दिया बन गई नई डिश बच्चे भी खुश और बस रोटी भी उठ गई!

अदिति रूसिया


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22 MINUTES AGO

समय के साथ हम बदले नहीं ऐसा नहीं है,
हमें तो समय के साथ बदलना ही होगा,
तभी हम आगे जीवन में बढ़ पाएँगे,
बदलते समय के साथ कई समझौते करने पड़ते है,
कुछ स्वभाव में कुछ रीति रिवाज में,
बोलने चालने के तौर तरीक़े हर चीज़ में,
बदलाव आवश्यक है,
समय के साथ चलना मजबूरी नहीं,
अपितु आवश्यक है,
जिसने समय के साथ चलना सीख लिया,
उसका जीवन सफल बन गया,
जिसने समय के साथ चलना नहीं सीखा,
निश्चित ही दिन रात की क्लेश होना है,
चाहे घर हो या बाहर,
हर जगह परेशानी आना है,
बदलते समय के साथ आचार विचार में,
बदलाव आवश्यक है!

अदिति रूसिया

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YESTERDAY AT 0:01

हमारा प्रेम नदिया कि बहती धारा सा,
बाँध न सकेगा कोई बंधन मिलने से हम दोनों को,
बँधे हुए हैं हम दोनों तो प्रेम के बंधन से,
अलग न कर सकेगा जमाना हमको बँधे हैं अटूट बंधन से!

अदिति रूसिया

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2 MAY AT 23:55

साँस लेते हैं मगर अपने लिए नहीं,
ये साँसे चल रहीं है मगर,
इंतज़ार है इनको तुम्हारा,
हम ज़िंदा है सिर्फ़ तुम्हारे लिए,
तुम्हारे बग़ैर हम मर भी न सके,
याद में तुम्हारी तड़पते हैं हम,
एक जिंदा लाश की तरह जी रहे हैं हम,
न मालूम था हमको कि,
मोहब्बत करने की सजा इस कदर मिलेगी हमें,
अब न तड़पाओ इतना हमको कि,
मर कर भी चैन न मिले हमको,
साँसे सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही चल रहीं हैं मेरी,
एक बार तो आकर थाम लो हाथ मेरा!

अदिति रूसिया



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2 MAY AT 23:43

रात का वादा था मुझसे,
चाँदनी रात में सितारों की चादर ओढ़े,
ख़्वाबों में मिलने का मुझसे!
सारी रात इंतज़ार में बीत गई तुम्हारे,
न तुम आईं न आया कोई संदेश ही,
न आईं ख़्वाबों में न ख़यालों में तुम!
तुमसे मिलने आस अधूरी रह गई,
रात का वादा भी निभा न सकीं तुम,
सारी रात तुम्हारी तस्वीर लिए हाथ बीत गई!
तन्हा से हम करवटें बदलते रहे,
न चैन से सो सके हम न जाग सके,
क्यों तोड़ कर दिल इतनी दूर चली गईं तुम!

अदिति रूसिया



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2 MAY AT 23:32

सोचते थे कभी हम,
मन के भावों को लिखना,
आसान बहुत लगता है,
पर जब लिखने बैठे तो जाना,
मन के भावों को लिखना आसान नहीं,
लिखते लिखते अब सीख गए,
आसानी से लिखना कहना,
अब फ़िक्र नहीं होती कौन क्या कहेगा,
अब तो बस यूँ ही जो मन में है,
लिख देते हैं भाव मन के,
समझने लगे हैं अब हम भी,
दूसरों के व्यवहार पढ़ने लगे हैं लोगों के मन को,
ज़िंदगी बिंदास जीते हैं,
चार दिन की जो है मिली,
हँसी ख़ुशी जी लें हम भी,
बहुत जी लिया सबके लिए,
अब थोड़ी अपने लिए जी लें हम भी,
आसान बहुत लगता है सब कुछ कहना,
पर कर पाना थोड़ा मुश्किल होता,
बस कह देने से नहीं छूटता घर द्वार,
ज़िम्मेदारियाँ बाँध देती हैं पाँव में बेड़ियाँ,
इन सबके चलते थोड़ा समय चुराया है अपने लिए,
तब बैठ कर लिखा है,
शब्दों में पिरोया है,
अपने मनोभावों को,
आसान बहुत लगता है,
ज़िंदगी में हर काम,
पर सिर्फ़ कहने के लिए,
जब करने बैठे तो समझ आता है,
दाल आटे का भाव!

अदिति रूसिया



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1 MAY AT 23:58

रात हसरत लिए आई है,
चाँदनी भी आज शरमाई है,
तुमसे मिलन घड़ी आई है!
इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुई हैं आज,
तुमसे मिलने को बेक़रार मन है आज,
बड़ी हसरत से सेज सजाई है!
न तोड़ना तुम मेरा विश्वास,
सालों बाद एक आस सी जग आई है,
बहुत दिनों के बाद मेरे चेहरे पे हँसी आई है!

अदिति रूसिया

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1 MAY AT 23:46

कौन नहीं मज़दूर यहाँ पर,
सभी तो हैं मज़दूर यहाँ पर!
ज़रूरी नहीं जो सड़कों पर काम करे,
हमाली करे वही मज़दूर कहलाए,
यहाँ हम सभी है मज़दूर,
क्योंकि करते सभी काम हैं!
बोझा उठाने को अगर मज़दूरी कहते हो तो,
हर इंसान उठाता बोझ यहाँ,
कोई बॉस के आगे पीछे घूम,
पकड़ता है बैग,
खोलता है कार का गेट,
सर सर कहते जी हुजूरी करता है,
वो भी तो मज़दूर है,
श्रम चाहे जैसे भी हो छोटा या बड़ा,
जो श्रम करे वही तो श्रमिक है,
मुझे गर्व है मैं स्त्री हूँ,
करती घर के काम सभी,
मैं भी एक श्रमिक हूँ क्योंकि,
करती तो मैं भी घर पर श्रम ही हूँ,
श्रमिक को यूँ तुच्छ न समझो,
न समझो कमजोर ही,
क्योंकि हम सब है श्रमिक,
नहीं हैं कमजोर कोई!

अदिति रूसिया

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29 APR AT 23:32

तुम्हारी आँखों से एक भी अश्क़ गिरे,ये मैं सब नहीं सकता!
मेरे आँसू ख़ुद बख़ुद बह जाते हैं, मैं ख़ुद को सँभाल नहीं पाता!!

अदिति रूसिया

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29 APR AT 23:15

हमारे नसीब में लिखा था,
हमारा एक साथ होना,
ऐसा नहीं कि हम चाहते नहीं एक दूसरे को,
दोनों ही एक दूसरे से अंजान,
एक दूसरे के पूरक,
न आचार विचार एक,
संस्कार में तो समानता थी,
पर पसंद दोनों की थी अलग,
दोनों की सोच में अंतर,
पर फिर भी प्रेम प्रगाढ़ था,
दोनों का मिलना तय था,
दो अलग विचार धारा के होते हुए भी,
हमारा एक साथ होना ही काफ़ी था,
हमारे प्रेम भरे रिश्ते के लिए!

अदिति रूसिया





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