मैं तेरे नक्श-ए-पा झुठला रहा था,
मगर सच है मैं पीछे आ रहा था।
उदासी कल मेरे बिस्तर पे सोई,
कोई साया मुझे बहला रहा था।
बहोत नज़दीक़ थे एग्ज़ाम के दिन,
मैं तेरा नाम रटता जा रहा था।
शिफ़ा मिलने लगी थी इस दवा से,
मैं तेरी झूठी कसमें खा रहा था।
फिर उसके बाद उसकी लाश आयी,
जो बरसों बाद घर को आ रहा था।
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