👉_क्या हूं मैं_👈
हर रोज भटकता हूं ;
यादों की बगिया में चैन ढूंढने,
चलते चलते थक जाता हूं,
फिर किसी कोने में बैठ जाता हूं ,
और अहकता हूं मन को समझाता हूं कि,
तू खो चुका है अपने हर एक उस पल को,
जिसमें तू मग्न हुआ करता था,
तभी अचानक से बीते पलों की पोथी खुल उठती है,
और अनेकों प्रश्न उठने लगते हैं ,
खुद को जवाब देते देते अधीर हो जाता हूं ,
ख्वाबों में जकड़ा जाता हूं ;
मन के महबस़ में असीर हो जाता हूं ,
अंततः कही जाकर समझ पाता हूं ,
बीज हूं मैं उस पेड़ का,
जिसकी सारी आशाएं मुझ पर टिकी हैं;
कि मैं उगू और छायादार फलों वाला वृक्ष बनूं ,
और क्या हूं मैं इस दुनिया में;
कुछ भी तो नहीं ।
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