Abhishek Tiwary   (Abhi)
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"कभी अल्फ़ाज़ को मेरे ये दुनिया सच समझती है...
कभी सच्चाई लिखता हूँ तो बस अल्फ़ाज़ पढ़ते है।"
Joined 31 March 2018


"कभी अल्फ़ाज़ को मेरे ये दुनिया सच समझती है...
कभी सच्चाई लिखता हूँ तो बस अल्फ़ाज़ पढ़ते है।"
Joined 31 March 2018
29 NOV 2021 AT 10:44

क्यूँ सोच का पंछी बैठा है उजड़ी सूखी सी डालों पर
क्यूँ बिखरीं है तन्हाई सी हस्ते-खिलते से गालों पर
क्यूँ मन के आँगन में कोई बेकल वीराना छाया है
क्यूँ लगता है अन्तर्मन में बरसों से कोई न आया है
क्यूँ ऐसा जीवन हुआ प्रिये क्यूँ ऐसी दिल की गलियाँ हैं
क्यूँ फूल सभी मुरझाये है क्यूँ बुझी बुझी सी कलियाँ हैं,

क्या सूरज तेरे पास नहीं क्या उजियालों से आस नहीं
क्यूँ तूने ऐसा मान लिया की तुझमें कुछ भी ख़ास नही
जीवन इतना दुशवार नही हम जितनी चिंता करते हैं
साँसें भी हैं धड़कन भी है फिर क्यूँ हम पल-पल मरते हैं
खोलें हम दिल के दरवाज़े रौशन ये सारा अम्बर है
एक बूँद की ख़ातिर मरना क्या अपना ये सात समंदर है,

अभिलाषाओं की माला में एक मोती डाल परिश्रम का
साँसों में ऐसी अलख जगा बदले मिज़ाज कुछ मौसम का
हुँकार तू ऐसी भर प्रचंड राहों के काटें जल जायें
जो तेरा रस्ता रोके वो सारे चट्टान पिघल जायें
क्रंदन को कर दे अट्टहास आँसू को तू मुस्कान बना
साहस तेरा पर्याय बने अपनी ऐसी पेहचान बना।।

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1 DEC 2020 AT 8:17

ये सुबह,
ऊगता हुआ सूरज,
ये पंछी,तितलियाँ..
एक तुम्हारी है कमी,यूँ तो फिज़ा रंगीन है...

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14 NOV 2020 AT 8:48

✨✨✨✨✨
HAPPY DIWALI
✨✨✨✨✨






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11 NOV 2020 AT 17:05

हरेक ज़ज़्बात को लिखकर अगर केहने लगेंगे सब..
हुनर फिर कौन सीखेगा शिकन माथे की पढ़ने का..
ज़ुबाँ मिल जाए गर खामोशियों को इस ज़माने में..
खत्म दस्तूर हो जाये नजर से बात करने का..

हुनर यूँहीं नही मिलता,क़लम से नज़्म गढ़ने का..
बहुत बेरंग होती हैं,ये सब रंगीनियाँ दिल की..
कलम के होंठ से अल्फ़ाज़,ज़ेहमत से निकलतें हैं..
लहू से सींच कर बढ़ती हैं फिर रानाइयाँ इनकी..

ये कागज़ पे लिखे अल्फाज़,हँसकर केह रहे मुझसे..
तेरे हर पल में सदियाँ हैं,हरेक लम्हा जमाना हैं..
बड़ी दिलकश है लफ्ज़ो से,क़लम तेरी मोहोब्बत भी..
हरेक आगाज़ हर अन्जाम तेरा शायराना है..

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17 JUN 2020 AT 21:43

बेनिशाँ सी है तेरी मौजूदगी हर लफ्ज़ में,
औऱ तुम केहती हो तुमपे हमने कुछ लिखा नही..
मेरे चेहरे का हरेक हिस्सा बयाँ करता रहा,
इश्क़ हर मंज़र में था,तुमको ही कुछ दिखा नही..

हर कहानी में हमारी तुम रही शामिल मगर,
लिख दिया सब कुछ तुम्हारा नाम बस लिखा नही..
दुनिया के इस बाजार में बेमोल चीज़ें बिक गईं..
मेरी आइनों की दुकान थी,कुछ भी मेरा बिका नही..

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15 JUN 2020 AT 11:35

रहें एक दूसरे से दूर अब तो ये ही बेहतर है,
मुलाकातें बढ़ेंगी तो मोहोब्बत रंग लायेगी..

तेरा चेहरा,तेरी आँखें,भले हम भूल जाएँगे,
मगर कमबख़्त ये मुस्कान हमको याद आऐगी..

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15 JUN 2020 AT 11:10

तुम्हें अपनी साँसे बना तो मैं लूँगा..
मगर साथ रेहने का वादा तो कर लो !
उतरने को तो मैं उतर जाऊँ दिल में..
मगर दिल्लगी का इरादा तो कर लो !
मोहोब्बत की कसमें तो अपनी जगह हैं..
जो वादा करोगी निभा तो सकोगी ?
मुझे मिलके रोने की आदत है तुमको..
बिछड़ने पे मुझको भूला तो सकोगी ?
कभी रास्ते में अगर मैं मिलूँगा..
तो तुम मुझसे नजरें चुरा तो सकोगी ?
अगर माँ ने तुमको कसम दे दी कोई..
कहो..मुझसे दामन छुड़ा तो सकोगी ?

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14 JUN 2020 AT 17:41

#Sushant

तेरा जाना दिल में कोई खालीपन सा छोड़ गया..
इस दुनिया से तू क्यूँ इतनी जल्दी रिश्ता तोड़ गया..

एक छिछोरा आया था जो सबके दिल को लूट गया..
तुझको खोकर लगा हमें जैसे कोई अपना छूट गया..

तेरी वो मुस्कान तेरे होठों से कैसे रूठ गई.?
हिम्मतवाले धोनी की हिम्मत ख़ुद कैसे टूट गई.?

यही दुआ करते है हम तू जहाँ रहे आबाद रहे..
यार तेरे सर पे तेरे "केदारनाथ" का हाथ रहे..🙁🙏

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13 JUN 2020 AT 22:16

विपदाओं की माया से मन विचलित होकर केहता है,
क्या खोना है क्या पाना है क्यों असमंजश रेहता है..

जगते सोते नैनद्वार से अश्रुधारा बेहती है,
अन्तर्मन के राजमहल में कौन सी दुविधा रेहती है..

रोज़ कोई अनजान पहेली शाम ढ़ले घर आती है,
उलझन की परिभाषा से अवगत हमको करवाती है..

अर्धरात्रि में जब कोई स्वपन आँख में खिलता है,
दुविधा,उलझन,असमंजस से तब आराम सा मिलता है..

अगले दिन का सूरज अपने साथ सवेरा लायेगा,
मन खुद मन से केहता है,कल सब अच्छा हो जाएगा..

अंधेरी रातों में दिल का ढाँढ़स स्वपन बंधाते हैं,
चलो किसी सपने की गलियों में फिर से खो जाते हैं..
चलो ख्वाब के सीने पे हम सर रख कर सो जाते हैं..।

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8 JUN 2020 AT 12:17

ना तो वो कुछ केह पाए और ना हमने इज़हार किया..
जो मिल पाया एक दूजे से दोनों ने स्वीकार किया..
होठ रहे ख़ामोश मगर ये आँखें सब केह देती थीं..
ज़ाहिर कुछ भी किया नही पर दिल ही दिल में प्यार किया..

एक आसान सा अफ़साना था उन दोनों की चाहत का..
एक चेहरे के दीद की खातिर नजरें रोज़ तरसती थीं..
अब तो न मुस्कान न आँसू हैं बेनूर निगाहों में..
एक दूजे से मिलने पर ये आँखे कितना हँसती थी..

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