abhishek kumar karn  
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E lover e.g - eBook,ePaper, eCommerce, e-banking, e-magazine ,e-wallet
Joined 18 August 2019


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4 MAY 2021 AT 10:31

फर्क बस इतना सा हैं 20 और 21 में की ,
कल dalgona की recipe ढूंढी जा रही थी।
और आज oxygen cylinder availability,
की कल दिया जलाई जा रही थीं ,
और आज चिताएं जल रही हैं ।
सरकार को न कल आपकी फिक्र थी ,
और ना आज आपकी फिक्र है।
* बाकी आप समझदार है *

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3 JAN 2021 AT 19:34

खुशियों के कुछ लम्हें होते हैं,
खुशियों की तारीखें नहीं होती;
वो तेरे साथ गुजरा हुआ हर एक लम्हा,
कितनी ही पहली तारीखों के बराबर हैं;

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12 AUG 2020 AT 12:57

उसका प्यार आज भी जिंदा हैं ,
वो साथ नहीं मेरे फिर भी ,
उसका प्यार आज भी मेरे साथ हैं ।

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6 AUG 2020 AT 22:28

कि बेसहारा सा लड़का हू सहारा चाहिए ।
डर हैं कि इस सियासी गलयारे की आर में ,राम और राफेल की धार में ,हमारी छोटी सी खवाइश बह न जाय ,
इसलिेए अब उस शहर की तलाश में हूं जहां नौकरी होनी चाहिए ।
लड़की की तलाश नहीं मुझको ,
वो तो मैंने देख रखी हैं।
अब तो बस इस इंसानी जंजाल के सियासी ,
बेरोजगारी से छुटकारा चाहिए ।
की बेसहारा सा लड़का हू सहारा चाहिए ।

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13 JUN 2020 AT 13:30

खैर बड़े साहब का छोड़िए आप लोग बताईए आज - कल आम काट के खाते हैं या चूस के ।

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4 MAY 2020 AT 13:50

सही ही कहा है किसी ने सब वक्त - वक्त का खेल है
अब इसे ही देख लो कभी ये ख्वाहिशें हुआ करती थीं आज समस्या बन चुकी हैं।:- hair style

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28 APR 2020 AT 12:22

कसम से आल्हा की इबादत पर से भरोसा खत्म हो गया हैं ,
जब से ये पता चला है की जहन्नुम वालों को दो बॉटल खून के बदले जन्नत दिया जा रहा हैं।

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27 APR 2020 AT 23:32

दोस्तो अब बेसब्री से इंतजार उन दिनों की है
जब हमारी मीटिंग (अड्डे बाज़ी) किसी सोशल मीडिया (स्काइप,ज़ूम ,गूगल डुओ ,वॉट्सएप) प्लेटफॉर्म की जगह किसी चाय कि दुकान पे हो ।

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27 APR 2020 AT 23:16

न जाने इस जदो- जहद सी दुनिया में खुद को बचाने के लिए क्या - क्या किए जा रहे हैं हम।

मास्क पे मास्क लगाएं जा रहे हैं हम ।

हाथ पे हाथ धोएं जा रहे हैं हम ।

अपने पद चिन्हों कि सीमाएं भी सीमित किए का रहे हैं हम।

ईश्वर की प्रार्थना और अल्हा की इबादत भी किए जा रहे हैं हम।

न ख्वाहिश रही अधूरी , न आवश्यकता हुई पूरी फिर भी जिए जा रहे हैं हम।

ना जाने क्या - क्या किए जा रहे हैं हम।



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19 APR 2020 AT 20:43

क्या खूब हैं ये what's app की forwarded दुनिया,
जिसने खुद कभी उगते सूरज को नहीं देखा आज वह सुबह का मनोरम दृश्य बतला रहा हैं।
क्या खूब हैं ये what's app की forwarded दुनिया,
जिनसे खुद के माता- पिता नहीं संभलते आज वो मानवता का पाठ पढ़ा रहा हैं।
क्या खूब हैं ये what's app की forwarded दुनिया,
जिसने खुद कभी घड़ी देखने की कोशिश न की हों वो आज समय का महत्व बतला रहा हैं।
क्या खूब हैं ये what's app की forwarded दुनिया,
जिसने खुद कभी एक मामूली सी कतार जिसमें 10-15 आदमी हो उसमें कभी खड़ा ना हुआ हो वो आज हमें धैर्य का पाठ पढ़ा रहे हैं।
क्या खूब हैं ये what's app की forwarded दुनिया,
जिसने खुद कभी गरीबी नहीं देखी जो आज वो खुद को गरीबो का बेटा गरीबों का नेता बतलाता है ।
क्या खूब हैं ।।

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