Abhishek Kumar Dubey   (@bhi Dubey)
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Joined 14 April 2020


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Joined 14 April 2020
25 APR AT 12:00

यूं तों रहते बहुत दूर हों ,

मगर बेहद इस दिल के पास हों ।

इस जहां की सारी खुशियां,

तुम्हारे पास हों ।

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15 APR AT 15:17

ख़्वाहिशें, ख़ुद्दारी, ख़िलाफत से अब बात नहीं बनती ,

और तजुर्बा कहता हैं कि अब उनसे बग़ावत कर लूं ।

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11 APR AT 11:17

घर की आँगन किलकारियों से अब भी गूंजती हैं ।

तेरी चहकने से माँ की मुस्कान पिता की शान बढ़ती हैं।

अपनी आन मान सम्मान और धर्म का मान रखना बहना,

तेरे होने से एक भाई का शीना चौड़ी,

तो बाजूओ में रक्त की प्रवाह होती हैं ।

खुश रहना हमेशा खुशियां तुम्हारी दास हैं,

जिस घर में बेटियां नहीं होती वे भाई अनाथ होते हैं।

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29 MAR AT 21:53

मन की चंचलता मन हीं न जानें ,

वन में भटकता मृग की भाती ।

व्याकुलता किस बात की ,

उम्मीदें रखें किस आश की ।

बस यह तों बहना जानें ,

समुंदर की लहरों के भाती ।

आशाओं और तृष्णा में जलना जानें,

रेगिस्तान की धूप में लौह सी तपना जानें।

मन की चंचलता मन हीं न जानें ,

वन में भटकता मृग की भाती ।

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25 MAR AT 0:04

उड़ चला, चल जा रि मनवा मेरे गाँव,

जहां पर नंदी जी करते हैं विश्राम!

महादेव का पाव पकड़ ,
वसुई नदी को कर प्रणाम।

जिसने भय से भयभीत नहीं होना,
निडरता हैं,तुम्हें सिखलाया ।

उल्टा–पुल्टा,अंदर–बाहर तैरना सिखलाया,

जिसने बाल्याकाल से नौजवानी को सिंचा,

उस मिट्टी को चूम , कर बारम बार प्रणाम ।

सहपाठी संघी साथी मित्रों से,

खेत खलिहान बाग बगीचों से कहना।

दूर कहीं शहरों में जो रहता हैं,
करता हैं सबको याद।

इस पूर्णिमा होलिका दहन में भी सम्मलित होना ।

उत्सव की तैयारी भी करना,
होलिका दहन की जय करे भी करना ।

भाई बंधु संग घुल मिल कर खेलना रंग गुलाल ।

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12 MAR AT 10:51

“गुलाब के फूल„

आश्चर्य की बात यदि किसी से पूछा जाय !

तुम्हें कौन सी फूल पसंद हैं?

तो ज़ाहिर सी बात हैं ,

सबका जवाब एक ही होंगा गुलाब के फूल ।

मगर कांटो से भिन्न होंगा ,

कांटे कोई पसंद नहीं करता ।

शायद चुभना उसका व्यवहार हों !

या इस वजह से,

जबकि दोनों का मूल एक ही हैं उत्तपत्ति का ।

इस से एक बात की पुष्टि होती हैं की समाज में ,

लोग किसे पसंद करते हैं, किसे ना पसंद करते हैं ।

उसके व्यवहार और हृदय की कोमलता को देखते हैं,

नकी चुभने वाली उसकी कटु वचन को ।

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11 MAR AT 21:18

की मेरे हालात हीं,

अब मेरे जज़्बातों का ख़्याल रखने लगे हैं ।

की मेरे मेहबूब,

तेरी ख़्वाहिशों को पूरी कर सकूं ।

अभी मेरी हैसियत नहीं,

की तुझे मोहब्बत कर सकूं ।

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6 MAR AT 10:50

पसंद तो तुम मेरी हो ,

मगर तुम कभी मेरी हो ।

ये आसान नहीं,

शायद !

दूर से ही दूरी काटना ।

मोहब्बत हो ,

मगर ए आसान नहीं,

तुझको भी ख़बर हो ।

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20 FEB AT 23:17

की मेरे हिस्सें में , ऐं मेरे मेहबूब !

कुछ ग़म, तन्हाईयां खामियां छोड़ देना ।

की तेरे चालें जानें के बाद ,

कोई तो हों जो मेरे साथ तो होंगा ।

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12 FEB AT 15:50

न जानें कितने लोग तुम्हारी आँखो का ज़िक्र किया होंगा ,

मैं तो ठहरा मुसाफिर, तुम्हारी बिंदियां को निहारता रहा ।

कितना ख़ुश नसीब जो ठहरा ,तुम्हारी दो आँखो के बीच ठहरा ।

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