पैरों तले दबाई जाती है क्यों औरते घरों के लिए ही सजाई जाती है।। हर रोज किसी न किसी के नज़र का शिकार बनती है फिर अपराध पे पर्दे डालने के लिए ज़िदा जलाई जाती है।।
एक अदना सा सवाल जेहन में आता है की इतने जतन के बाद भी ख्वाब अधूरा क्यों रेह जाता है।। खुद के ही वजूद पे सवाल उठाता हूँ आईने में चेहरा मेरा धुंधला क्यों नज़र आता है।।
आतंक फ़ैलाने वाले हैवान गलत है हिन्दु मुस्लिम करने वाले शैतान गलत है।। अपने ही अपनों के खून प्यासे हो रहे है चेहरे से मासूम है उनके अंदर बैठा इंसान गलत है।।
जब वक़्त भी तुम्हारा साथ न दे तो क्या करे जब अपने ही मन के पिंजरे में तुम कैद हो तो क्या करे।।। चिता और चिंता के मतलब बस एक बिंदु से बदल जाते है नशे के बाद भी रात करवटो में निकल जाए तो क्या करे।।
इस सफर का अंजाम क्या होगा जो अन्दर से ही मर चूका हो वो अब ज़िंदा क्या होगा।। हवा की रुख जिस और थी हम उसी ओर चल दिए शजर के पत्ते झड़ चुके है शाखाओं पर लगे फल का क्या होगा।।
जब झूठ ही सच का रास्ता कर रहा साफ़ हो जब किसी के आने या जाने का तुम्हे ना हो रहा आभास हो।। जब यार ही तुम्हे दे रहा अपने कम वक़्त का हिसाब हो तब तुम इन आँखों के समंदर को समेटे अपने भीतर रखना।।
सोर इतना है फिर भी तुम्हे कुछ सुनाई क्यों नही देता आसमाँ में अब सफ़ेद बादल दिखाए क्यों नही देता।। डर के साये में जीने की आदत हो गयी हमे अब मेरे हौसले जो कर दे बुलंद ऐसे कोई यार दिखाए क्यों नही देता।।