ABHI JAIN   (सनकी)
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Joined 21 December 2017


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23 FEB 2021 AT 23:19

ना होते किनारे तो क्या औक़ात समन्दरों की होती
ना होती ख़ुशी घर लौट आने की ना ख़्वाहिश डूब जाने की होती।
काफ़ी मशक़्क़त से जलाई गयी तुम्हारे इशारे पर जली शख़्सियत
पहले कहते जाने का मन था ना कोशिश राख जलाने की होती ॥

सनकी

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22 FEB 2021 AT 22:39

शराब है चढ़ कर सर पर नशा देती है
तुम तो ख़ैर दगो के लिए मशहूर हो ॥

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22 FEB 2021 AT 22:33

क्या ज़रूरत माशूक़ की कलम कह रही है तब तक
जब बेरोज़गारी होगी उसमें काम ढूँढना आम बात है ॥

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2 JAN 2021 AT 0:06

हर किसी के ख़ेल पर चुप रहा था मैं
तरक़्क़ी देखिये जनाब ! पसंदीदा ख़ेल हैं आज हम ॥

सनकी

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1 OCT 2020 AT 18:15

ये सस्ते ज़हर कहाँ मारेंगे उसकी मौजूदगी रगों में
ख़त्म मुझे करना है तो उसकी कहीं और मौजूदगी का सबूत ही ले आओ ॥

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29 SEP 2020 AT 20:31

कहीं टकरा जाओ तो चेहरा ढँक देना पल्लू से अपने
अब हसीन चेहरों को देख कर नज़रें फेर लेने की आदत है ॥

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26 SEP 2020 AT 18:35

माँगे जाने पर हिस्सा उनका मुझमें खोल कर रख दिया खुद को
ग़र अब भी ना नज़र आऊँ इश्क़ नहीं हिस्सेदारी कमजोर है उनकी ॥

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24 SEP 2020 AT 21:26

हाल -ए- दिल मुझसे कहकर छुपाते है की ठीक है वो
वो झूठे हैं हमें पता ही ना हो जैसे ॥

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22 SEP 2020 AT 19:29

कहा करती थी फ़िज़ा-ए-मुहब्बत की बर्बाद कर के मानेगी हमें
हम उसकी यारी में रह गए और वो बात की पक्की निकली ॥

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18 SEP 2020 AT 20:52

ज़्यादा हंसते चेहरों में भी साहब खोट पुरानी होती है
साज़िशों के घरों पर पर्दे अक्सर ज़्यादा चमकदार होते हैं ॥

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