Abcd Dcba   (अंशुधर)
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Follow करो, जान जाओगे.....
Joined 15 January 2021


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22 JAN 2023 AT 13:53

यंही गवाया है सुकू, यंही वो साल रहा।
गए सब जीत, तेरी हार का मलाल रहा।

कई अंदाज़ थे, फिर भी पुराना हाल रहा।
मेरा हर हाल में बस हिज्र हलाल रहा।

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15 JAN 2023 AT 14:38

पीना न पीना भी, अपनी जगह है।
जहर जानलेवा भी अपनी जगह है।
जब-जब भी गुजरे कर कर के तौबा।
कदम लड़खड़ाना भी अपनी जगह है।

रकीबों का संग भी अपनी जगह है।
फकीरों का संग भी अपनी जगह है।
समंदर से पूछो किनारों की मतलब।
कहेगा वो दोनों भी अपनी जगह है।

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4 DEC 2022 AT 12:49

आम तो आम गुठलियों का भी दाम आएगा।
पराए कंधों पर बैठ कर भी मकाम आएगा।
दुआएं तो बेमतलब की जाती है, यू नहीं की।
वो तरक्की कर गया तो मेरे भी काम आएगा।

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29 NOV 2022 AT 14:16

जिंदगी निर्लज्ज काज करती है।
भूखे से रोटी का मज़ाक करती है।

कल परसों नरसों, झूठ है सब।
वो जो करती है आज करती है।

समझ के फेर में उलझा के मुझे।
बेवकूफो की तरह नाज़ करती है।

अनुशासन या समय का गुलाम।
जर्रे जर्रे पर राज करती है।

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25 OCT 2022 AT 23:51

समझदारो की फ़ेहरिस्त हमें रास नहीं आई।
अकल दांत जो आई तो उखड़वा दिए हमने।

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20 OCT 2022 AT 15:18

'अंशु' ज़िद ने संभाल रखी है वफाएं कई।
मैंने कई समझदार बेवफा होते देखे है।

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18 OCT 2022 AT 17:51

लिखते थे मुझको, खुद पे अदब से।
मिटाने लगे हैं, मुझको वो सब से।
समंदर और सहरा को भूल गया हूं।
भूला हूं अपने, ख़्वाब मैं जब से।

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10 OCT 2022 AT 23:11

शायद अब हम इंसान नहीं रहे।
के जानने वाले, पहचान नहीं रहे।
खुद को देख कर जलने वाले हम।
तबाह हो गए पर मान नहीं रहे।

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9 OCT 2022 AT 12:34

सभी जिस्मों ने ठुकरा दिया है मुझे।
अब किसी रूह से लिपट जाऊंगा, खामखां मैं।

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7 OCT 2022 AT 11:09

नज़ारा देखो कि शब-ए-फ़ित्ना हैं।
फरेबी फ़िराक़ आसमा जितना है।
बलवा ही बलवा है मेरे शहर में।
बंद घड़ी में बाकी वक्त कितना है।

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