अपने अश्कों को मैंने जाम बनते देखा है खुशनुमा रातों को मैंने तनहा शाम बनते देखा है ऐसे तिनका-तिनका छीनते गए मेरे हक़ मुझसे मैंने खुद को सबसे खास से आम बनते देखा है
अपने अश्कों को मैंने जाम बनते देखा है खुशनुमा रातों को मैंने तनहा शाम बनते देखा है ऐसे तिनका-तिनका छीनते गए मेरे हक़ मुझसे मैंने खुद को सबसे खास से आम बनते देखा है