वर्दिपोष कातिल...
नए तबादले के साथ नया शहर , नया बंगला, बिखरा हुआ सामान पूरे घर मे पर बालकनी से देखने पे अगर कोई चीज़ नही बदला तो वो था मौसम का मिजाज़। रात भर कड़ाके की बारिश के बाद सुबह मिट्टी की वो सौंधी सी खुशबू। जो ठीक मेरे घर कानपुर की याद ताज़ा कर रहा था। लेकिन, इसे बड़े से शहर में सुकून नही था ख़ैर, सुबह सुबह टहलने निकला तो थोड़ी दूर चलते ही देखा कि फुटपाथ के पास एक लाश पड़ी थी। बिल्कुल बेतरतीब और हैवानियत की छाप उस लाश के जिस्म पे साफ दिखाई पड़ रहा था। बड़े ताज्जुब की बात ये थी कि उस रास्ते से कई लोग गुज़रे और कई लोगो की नज़र भी गयी पर सभी नज़र बचा के निकल गए। मुझसे ये मंज़र देखा न गया तो मैं लाश के पास गया और देखा जिस्म पे अनगिनत लाठियों की मार पड़ी थी। मैंने वक़्त न ज़ाया करते हुए हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा करने वाले बेहद ईमानदार ख़ाकी दस्ते को बुलाया। लाश को मैं इक टक देख रहा था कि तभी नज़र पड़ी लाश के पास पड़े एक बिल्ले पे जिसपे नाम और सर्विस नंबर लिखा था।ख़ाकी दस्ता वक़्त का पाबंद हर बार की तरह इस बार भी आते आते दो घण्टे लगा चुका था। काफी ज़िम्मेदाराना रवैया दिखाते हुए बड़े अफसर की सिपाही से लाश को देख के कुछ कानाफूसी हुई।
भाग १
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