जिन्दगी में सब को किसी ना किसी की ज़रूरत होती हैं
अगर कोई साथ ना हो तो उसकी कमी महसूस होती हैं
अक्सर टूटे हुए इंसान को किसी की ज़रूरत नहीं होती
ये हम सोचते हैं पर..वो ये जताना नहीं चाहता!
टूटा हुआ इंसान सबसे ज्यादा खुश रहता हैं..
नहीं.. ये तो बस हम सोचते हैं
पर.. उसे हर पल डर रहता हैं टूट के बिखर जाने का!
वो दर्द बांटना छोड़ देता हैं इसका मतलब ये नहीं के
उसे दर्द ही महसूस नहीं होता उसकी हर एक मुस्कुराहट के पीछे
उसका बेनाम_दर्द होता हैं!
सबसे ज्यादा दर्द तो उसे तब होता हैं जब उसे अपना दर्द...
एक कागज़ पर बयां करना पड़े...
किसी ना किसी के पास कोई ऐसा होता हैं जो उसका दर्द समझे
मगर बिखरी हुई चीज़ को ही बार बार बिखेरा जाए तो दर्द नहीं
चीखें निकल उठती हैं!
माना ज़िंदगी किसी के सहारे से नहीं चलती
मगर बेसहारा होके भी नहीं चलती!!
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