Mishty _Miss_tea   (Mishty's moment ©)
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Joined 30 September 2018


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Joined 30 September 2018
6 HOURS AGO

તેજ, તીખી, ગરમ અને સુગંધી અદ્દલ ચા જેવી જિંદગી,
નર્યા ગળપણ નો ખાલી રસથાળ આપણને ફાવે નહીં,

ટેબલ, ખુરશી અને દરવાજા ને પેલી પાર ના લોકો જેમ
એક જગ્યા એ રહેવું બની ને કાટમાળ આપણને ફાવે નહીં,

આવે હાથ માં એટલે તરત જ જીવી લેવાની ચા માફક,
ઠંડી થઈ ગયા પછી થીજી ગયેલી વરાળ આપણને ફાવે નહીં,

હોત રામરાજ તો પીધાં કરીએ રામરસ ઘૂંટડે ઘૂંટડે,
છે હાજર ચા તો પી લઈએ, થવું શરમાળ આપણને ફાવે નહીં,

આ જિંદગી છે ડગલે પગલે ચા જેવી રંગ, રૂપ ને સ્વભાવ માં,
મીટ માંડી ને રાહ જોતી મૃત્યુ ની ઘટમાળ આપણને ફાવે નહીં

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YESTERDAY AT 13:48

शुरूआती दौर में
होती है रात रातभर बातें,
दो लोग अजनबी होकर भी
शब्दों को.. कुछ ज्यादा ही अहमियत दी जाती है,
सुरज से उगने से लेकर चांद के डूबने तक
उसे मुस्कुराहाट से निखारकर परोसा जाता है,
और फ़िर आहिस्ता आहिस्ता
प्रेम के बुलबुले फीके पड़ने लगते हैं,
प्रेम और शब्द... दोनों धीरे धीरे कम होने लगते हैं,
जहां शब्द काम करते थे वहीं
आवाज़ ख्वाबों की चद्दर में अपना मुंह छिपाए अपनी
तकलीफें अपनेआप में समेट कर रख लेते हैं
और फ़िर रातभर बातें करने वाले लोग
अपनी बिखरी यादों के साथ रतजगा करते हैं
दो लोगों के बीच का बातों का हिस्सा
मौन को सौंपकर फिर से दो लोग अजनबी बन जाते हैं..

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YESTERDAY AT 10:01

कैसा हो की तुम्हें कुछ कहना हो
और शब्द न मिले..
और लिखने के लिए कोई कागज़ न हो
तुम मरहम ले कर बैठे हो
और ज़ख्म दिखाई ही न दें

कुछ भी दोहराने का मन हो
और तुम्हारे पास 
उसकी आंखें ही न हो..

संजीदा होती है कुछ खामियाँ
ठीक इतनी संजीदा कि 
तुम जी रहे हो
और ज़िंदगी दिखाई ही न दे

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19 MAY AT 17:03

मेरे घर वाले नहीं मान रहें कहकर हर बार घरवालों के लिए प्रेमिका को छोड़ा गया और शादी के कुछ महीनों बाद पत्नी के लिए उन्हीं घरवालों को छोड़ दिया.... शायद इसीलिए की प्रेमिकाएं  कभी नहीं चाहती के उसकी वजह से तुम घरवालों से अलग हो...और पत्नियां कभी स्वीकार ही नहीं करती के मेरे आने के बाद ही बूढ़े मां बाप से अलग हुएं हैं — % &अपने अपने पास्ट में  जाओ तो पता लगेगा की आपकी  प्रेमिकाओं ने ना केवल आपको अपनाया आपके साथ खड़ी रही पर उसने हर मुलाकात में आपके मां बाप भाई बहन...सारे घरवालों का पूछा और सबके साथ घर बसाने के इंतजार में रही और जब मौका आया तो प्रेमी ने घरवालों का साथ दिया...मां बाप के बूढ़े होने का हवाला दिया और प्रेमिका को त्यागा गया.... लेकिन आज भी ज़माना नहीं समझा की शादी होते ही ज्यादातर पत्नियों ने घरवालों से अलग होने की मांग की तब किसी पति को मां बाप बूढ़े होने का याद नहीं आया और हर पति ने अपनी पत्नी का साथ देकर खुशी खुशी अलग हो गए.... निभाना कभी नहीं सीखा... लड़ना कभी नहीं सीखा... प्रेमियों ने केवल छोड़ना ठीक समझा और घरवालों के लिए प्रेमीका को छोड़ा और पत्नी के लिए उसी घरवालों को....— % &

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19 MAY AT 13:07

इतनी तो राहत है अब दर्द_ए_उल्फ़त मैं... नेमत!!
हफ्तों की मशक्कत में इतवार सा सुकुन हो तुम !!

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19 MAY AT 10:36

वैसे कभी तन्हाई समझ नहीं आई मुझे , लेकिन हज़ारों की भीड़ में भी ख़ुद को अकेला पाया
तो लगा अकेलेपन ने ठीक से महसूस किया है मुझे

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19 MAY AT 9:11

मैंने कहा है कई दफ़ा कि कितने रातजगे बोए हैं,
इक उम्र गुजार दी लेकिन तन्हा मुश्किल से सोये हैं,

दुआ में मांगा करते थे हम तुम्हें हाथ फैलाकर,
सजदे में झुकाकर आसमां दाने तस्बीह के खोये हैं,

कोई बद्दुआ सी... ये ज़िंदगी रूआं रूआं सी,
दर्द को दवा बनाकर हम चाक जिगर में पिरोये हैं,

हंसने का सलीका याद नहीं, मुस्कुराने की बात नहीं,
तुमसे बिछड़कर मोहब्बत में इतना छुप छुप कर कर रोये हैं

मैंने कहा है कई दफ़ा कि कितने रातजगे बोए हैं,
इक उम्र गुजार दी लेकिन तन्हा मुश्किल से सोये हैं,

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18 MAY AT 22:32

प्रेमपत्र और कुछ भी नहीं
जरूरत पढ़ने पर
औरत अपने हर सपने लिख के देती है
और नीचे लिखकर देती है
चिंता मत करना मैं तुम्हें प्रेम करती हुं
और पढ़ें लिखे पुरुष
केवल नौकरी के लिए पढ़े
हर पुरूष को प्रेमपत्र लिखना शायद इसलिए नही आया की वो
हर एक को लिख कर नहीं दे सकता की मैं तुमसे प्यार करता हूं

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18 MAY AT 20:38

सूरजमुखी मुंह फुलाए बैठी रहती है बागीचे में
फ़िर भी रोज़ शाम को घर लौट जाता है सुरज

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18 MAY AT 19:39

अपनी उदासियों को पहना कर लफ्ज़ों का लिबास,
हर सफ़हों को संवारती हुं मुस्कुराहट के नकाब से..

दर्द, मायूसी, मौत अब अशआर में नज़र आने लगे है
मैं चुप्पी में जल रही हुं अपने अश्कों के तेज़ाब से..

खोलोगे तो महक मेरी किताबों से आयेगी इक दिन,
मेरे चाक_ए_जिगर महकेंगे बदले उनके गुलाब से..

पढ़ लेगा ज़माना हर्फ दर हर्फ मेरी चाहत का नशा,
इकतरफ़ा मोहब्बत सुकून होती है बदले शराब से..

पीछे काफ़िला ..दुआ में मौत... मैंने मांगा खुदा से,
सुखनवर....जुस्तजु को हटा दिया है मैंने ख़्वाब से..

अपनी उदासियों को पहना कर लफ्ज़ों का लिबास,
हर सफ़हों को संवारती हुं मुस्कुराहट के नकाब से..

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