हमसे यह अपराध हुआ था,
उसको अपना मान लिया था,
और सज़ा में हमने पाया, युग-युग का एकांत।
रहें कहाँ तक शांत?
दुनिया ने जो-जो समझाया,
हमने सबको थोथा पाया,
जीवन से ही हार रहे हैं, जीवन के सिद्धांत।
रहें कहाँ तक शांत?
पीड़ा का क्षण-क्षण गाना था,
दर्द सहज ही समझाना था,
लेकिन भावों की झोली में, कम रह गए तुकांत।
रहें कहाँ तक शांत?
- रोहन कौशिक
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