महेंद्र कुमार 'वाक़िफ़'   (कुमार वाक़िफ़)
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Joined 1 January 2018


Joined 1 January 2018

देह में दुखती हुई पुरवाईयाँ
और ऐसे में तुम्हारी याद
प्रेम करता ही रहा उत्पात जीवन में

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◆ आज़ादी की वर्षगाँठ पर ◆

आजादी की वर्षगाँठ पर गाँधी याद आते हैं
वैसे नहीं जैसे रोज याद आते हैं

आज़ादी की वर्षगाँठ पर कई सपने टूटते हैं
वैसे नहीं जैसे रोज टूटते है

आज़ादी का दिन रोज़ का दिन नहीं है
हालाँकि रोज का दिन आज़ादी का दिन ही होता रहा है पिछले सत्तर सालों से

आज़ादी की वर्षगाँठ पर कविताएँ भाषाओं की सीमाएँ तोड़कर फैल जाना चाहती हैं
वैसे नहीं जैसे रोज चाहती हैं

आज़ादी की वर्षगाँठ पर सबकुछ खास होता है
उससे कहीं ज़्यादा जैसा रोज होता है

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◆ बारिश ◆

हवा की देह से रिसता है पानी

वहाँ दूर
अनमना आकाश खाली कर रहा है अपना अंतस

कैसी पीड़ा है ये, कैसा दुख
कम होता तो गिर सकती थी ओस
हाय ! दुःख का आवेग इतना तेज !

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◆ दर्शन - 2 ◆

ईश्वर अनंत ब्रम्हाण्ड की यात्रा पर है पहली और अन्तिम बार जब वो यहाँ आया था
हम सो रहे थे

अनन्त की यात्रा पर निकले
बहुत कम ही लोग लौट पाते हैं वापस

पंद्रहवी सदी के यूरोपीय नाविक भी
कहाँ ही लौट पाते थे सब के सब

ईश्वर न तो नाविक है
और न ही उतना साहसी

फिर भी उम्मीद है; वह पुनः लौटेगा !

उम्मीद ये भी है
इस बार हम जाग रहे होंगे

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◆ दर्शन- 1◆

मेरे जन्म से पहले दुनिया नहीं थी
मेरी मृत्यु के बाद दुनिया नहीं रहेगी

मैं था मेरे जन्म से पूर्व भी
भविष्य की चिन्ताओं में, माता-पिता की इच्छाओं में

मैं रहुँगा मेरी मृत्यु के बाद भी
तुम्हारी स्मृतियों में, सरकारी दस्तावेज़ों में

तुम नहीं रहोगे, कहीं नहीं रहोगे मेरे लिए
पारलौकिक कुछ भी नहीं

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◆ स्मृति, स्वप्न और तुम ◆

स्वप्न है; नींद में स्मृतियों का इच्छाओं से मिल जाना
और दुःस्वप्न; उन्हीं स्मृतियों का डर से मिल जाना

स्मृति होने और न होने के बीच की जगह है
स्वप्न एक अलग दुनिया है
जहाँ कुछ भी स्वप्न नहीं

दृश्य पर दृश्य गिरते है
धूप पर गिरती है जैसे धूप
तुम्हारी तस्वीरों के कोलाज से भरा है स्मृतिकोष

तुम जब पास होती हो
दुःस्वप्नों से भरी होती है नींद
जिनमें खोता ही चला जाता हूँ तुम्हें

तुम जब दूर होती हो
सपनों में लगभग चूम ही लेते हैं तुम्हें मन-अधर

इस दुनिया में पाता/खोता हूँ तुम्हें: उस दुनिया में खो देता/पा लेता हूँ।
यूँ हिज़्र-ओ-विसाल मेरी दिनचर्या में है शामिल

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'कब तक'

( In Caption )

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◆ एक ही पाठ ◆

कविता के नीचे दबी
एक और कविता मत खोजो

मुझे पता है
शब्दों को परत दर परत उधेड़ने वाली तुम्हारी आदत के बारे में
पर यहाँ रहने दो

बादलों में
नए नए चित्र खोजने वाली तुम्हारी कल्पना शक्ति को आराम दो

मैं चाहता हूँ
मेरी कविता का एक
और मात्र एक अर्थ निकाला जाए
वो
जो मैंने तय किया है

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"मेरी निजता की परिधि में तुम"

( In caption )

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स्नेह के सागर में पीड़ा नमक की तरह घुली हुई है
फिर भी, मन है कि बस डूब जाना चाहता है
उतावला प्रेमी हूँ मैं !

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