नीरज निश्चल   (Neeraj Nishchal)
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मुहब्बत के सिवाय कुछ नहीं आता
https://www.facebook.com/prem.mukt
Joined 26 November 2018


मुहब्बत के सिवाय कुछ नहीं आता
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Joined 26 November 2018

मै कभी न आया तुम्हारे पास
प्यार के लिए
क्यों कि प्यार ने कभी मजबूर न किया
प्यार न कभी बेचैन हुआ न कभी आहत हुआ
न कभी डिगा न कभी गिरा
प्यार स्वार्थी और अंधा नहीं है
उसे आता है तुम्हारे बिना भी तुम्हारे साथ रहना
तुम्हारा हो जाना तुम्हे अपना बना लेना
मै जब भी आया तुम्हारे पास
सिर्फ़ जरूरतों के लिए
जरूरतें बहुत स्वार्थी और बेचैन होती हैं
जो तुम्हारे बिना भी नहीं रह पातीं
और तुम्हारे साथ भी नहीं रह पातीं
वह मुझे भी आहत करती हैं और तुम्हे भी
जब ये जरूरतें खत्म हो जाती हैं
तो प्यार का खुला आकाश बचा रह जाता है
जो तुम्हारे साथ भी है तुम्हारे बाद भी ।

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साल कितने बदल गये होंगे ।
उम्र जी कर निकल गए होंगे ।

कितनी नदियों में आब भरने को,
कितने पत्थर पिघल गए होंगे ।

तुम क्या जानो तुम्हारी आहट से,
कितने अरमां मचल गए होंगे ।

फिर नये ढब में ढल गए होंगे ।
लोग यूँ भी बदल गए होंगे ।

हिज़्र की आग जब जली होगी,
सारे अरमान जल गए होंगे ।

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हमारी सबसे बड़ी परेशानी है
हमें कुछ करके कुछ मिलेगा
हम कुछ करने का मज़ा नहीं लेते ।

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इससे पहले उड़ान पैदा कर ।
तू खुला आसमान पैदा कर ।

एक बच्चा भी एक बूढ़ा भी,
एक खुद में जवान पैदा कर ।

इससे पहले ज़बान पैदा कर ।
सुनने का इत्मीनान पैदा कर ।

इक नया दौर ढूँढ़ लाने को,
इक नया सा रुझान पैदा कर ।

शेर की रूह में उतरने को,
एक उर्दू ज़बान पैदा कर ।

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31 DEC 2023 AT 16:01

प्यार भी जब बेक़ाबू होने लगता है ।
आप से तुम, तुम से तू होने लगता है ।

वैसे तो लगता है कुछ भी खास नहीं,
तुमसे मिलकर ज़ादू होने लगता है ।

लफ्ज़ मुहब्बत जब भी सुनायी देता है,
दर्द पिघलकर आँसू होने लगता है ।

तुम इक फूल का बेहद जीना क्या जानो,
मिटते-मिटते खुशबू होने लगता है ।

नुक़्तों का रस जब बोली में घुल जाये,
ज़र्रा-ज़र्रा उर्दू होने लगता है ।

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30 DEC 2023 AT 23:31

जो मज़हब से आज़ाद नहीं ।
वह प्यार से है आबाद नहीं ।

जो अपने लिए ही माँगी गयी,
वह तो कोई फ़रियाद नहीं ।

जो सब तक बाँटी जा न सके,
वह शाद भी कोई शाद नहीं ।

जहाँ काँटों को भी प्यार मिले,
वह गुलशन हो बरबाद नहीं ।

कुछ भी तुझसे पहले नहीं था,
कुछ भी तेरे बाद नहीं ।

चीजें लौटके तब आतीं हैं,
जब रह जातीं याद नहीं ।

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यह तुमको मालूम हो या मालूम न हो,
तुम हर चीज़ में ईश्वर ढूंढ़ा करते हो ।

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तुमसे गर राब्ता नहीं होता ।
रास्ता- रास्ता नहीं होता ।

मंजिलों को तलाशते लेकिन,
मंजिलों का पता नहीं होता ।

तुम नहीं हो अगर नहीं है कुछ,
तुम जो होते तो क्या नहीं होता ।

होके बरबाद शाद रहते हैं ,
बस मज़ा ही मज़ा नहीं होता ।

प्यार है इंतज़ार सदियों का,
सब्र तुमको ज़रा नहीं होता ।

प्यार है सब में खुद को पा जाना,
प्यार में दूसरा नहीं होता ।

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भूली-बिसरी याद आयी इक टीस पुरानी लिखता हूँ।
गीत-ग़ज़ल, अशआर नहीं मैं आँख का पानी लिखता हूँ ।

एक अधूरा सा सपना जो टूटे और न पूरा हो,
जो तुम मुझमें छोड़ गए थे वही निशानी लिखता हूँ ।

यूँ तो तेरी यादों के सब मौसम रंग-बिरंगे हैं,
उसके बाद भी तुझ बिन जो है ऋतु वीरानी लिखता हूँ ।

कल तक जो नज़दीक बहुत थे आज वो मुझसे दूर बहुत हैं,
रीत नई है लेकिन अपनी प्रीत पुरानी लिखता हूँ ।

तेरा ही आभास मिलेगा पढ़ने-सुनने वालों को,
जो तेरे किस्से बुनती हो वही कहानी लिखता हूँ ।

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यूँ तेरे इश्क़ में संज़ीदा हुआ जाता हूँ ।
अपनी ही रूह से वाबस्ता हुआ जाता हूँ ।

एक सहरा था लिए प्यास कई जन्मों की,
इतना भीगा हूँ कि मै दरिया हुआ जाता हूँ ।

मेरी हर राह में दीवारे ही दीवारें थीं,
अब मै खुद में ही कोई रस्ता हुआ जाता हूँ ।

मुझको किस तौर से अब याद करेगी दुनिया,
मैं कभी आब कभी शोला हुआ जाता हूँ ।

मुझसे पूछा न करो लोगों ठिकाना मेरा,
जो गुज़र जाये वही झोंका हुआ जाता हूँ ।

तेरी महफ़िल में कभी होंगे मेरे भी चर्चे
मै कहानी का तेरी किस्सा हुआ जाता हूँ ।

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