धीरज सिंह नागवंशी   (धीरज सिंह 'तहम्मुल')
961 Followers · 320 Following

read more
Joined 20 March 2018


read more
Joined 20 March 2018

मयख़ाना बनवाया है पे रख दी है तस्वीर तुम्हारी
मय की पूछे क्या कोई मदहोशी है तस्वीर तुम्हारी

दहशत में रहता है दिल ये हर पल बस अंजाम से अपने
क्या होगा जो जाने सब याँ रक्खी है तस्वीर तुम्हारी

क्या सूरत लेकर रू–ब–रू होंगे रोज़–ए–हश्र ख़ुदा से
सज्दे में होता हूं जब भी दिखती है तस्वीर तुम्हारी

-



तुम लौट गए तो क्या होगा ?

-



कह रहे हो अलविदा फ़िर कह रहे हो फ़िर मिलेंगे
हिज्र में हम ख़ाक होंगे ख़ाक से क्यों फ़िर मिलेंगे

है नहीं सूरत कोई ऐसी कि जिसमें हम मिलेंगे
फ़र्ज़ कहता है सो कहते हैं हमें वो फ़िर मिलेंगे

आपके रहमोकरम से रूह ये आज़ाद होगी
और होंगे आप मेरे सामने यों फ़िर मिलेंगे

वो सरे बाज़ार बेशक क़त्ल कर दें आबरू ही
है 'तहम्मुल' की अना ऐसी कि उन को फ़िर मिलेंगे

-



ज़ख़्म लगे हैं कितने दिल पर याद करूँ या तुमको देखूँ
शाद नहीं हूं मैं तुमको नाशाद करूँ या तुमको देखूँ

उम्र गए पे तेरी सूरत और मिरी आँखें टकराईं
उम्र गए में सोची थी वो बात करूँ या तुमको देखूँ

-



पच्चीस फुट ऊपर

-




फिर से मिलना बात ज़ुबानी होती है
सबको अपनी टांग छुड़ानी होती है

तन्हा होगा कौन महज़ मेरी ख़ातिर
जीने को बस एक जवानी होती है

जाने कैसा बोझ लिए है सीने पे
दरिया की भी एक कहानी होती है

रोई मीरा आह तलक बस कान्हा को
इस पर भी बस एक दिवानी होती है

लिक्खे जो अशआ'र यही शाईरी है
इसमें तो बस बात घुमानी होती है

वादे यादें इश्क़ मुहब्बत क़ुर्बानी
कहते हैं हर चीज़ पुरानी होती है










-



रोज़ाना सजती है महफ़िल तन्हा-तन्हा लगता हूं मैं
तूने ये कूचा क्या छोड़ा गोया ख़ुद को ख़लता हूं मैं

जलता रहता हूं मैं हर पल फिर भी जाने क्यूं इस पर भी
जिस जानिब भी आतिश दीखे उस जानिब ही चलता हूं मैं

तुमको देखो नज़रें फेरो इस से अच्छा तो ये होगा
सीधा-सीधा कहता हूं मैं देखो तुमसे जलता हूं मैं

इसमें अब कैसा घबराना मुझको सम से कैसा ख़तरा
सम पीता रहता हूं सांपों के साये में पलता हूं मैं

सूरज उगता उस जानिब है लेकिन ढलता इस जानिब है
मयख़ाने में उगता हूं मैं मयख़ाने में ढलता हूं मैं

-



न जाने लोग कैसे चीज़ ये ख़राब पीते हैं
चलो ये जानते हैं बैठकर शराब पीते हैं



-



दूरियां बढ़ने से
प्रेम अगर बढ़ता है
गिले-शिकवे सभी
माफ़ हो जाते हैं
दुश्मन भी अक्सर
याद आ जाते हैं

तो दूरियां बढ़ ही जाएं
अच्छा है हम बिछड़ ही जाएं

-



रोध का आकार जो हो
दृष्टि में प्रतिकार जो हो
कोह सा संताप हो या
जी में हाहाकार जो हो

है क्षणिक संघर्ष, इनमें दीर्घकालिक बल नहीं है
मृत्यु कोई हल नहीं है

नित्य पथ पर अग्रसर हों
पग सदा ही तीव्र हों
फिर कोई जीवन में ठहरे
या कि जाना शीघ्र हो

सिद्ध हो, इनसे तुम्हारी चाल में हलचल नहीं है
मृत्यु कोई हल नहीं है

रक्त से जो बाग सींचा
पुष्प उसके गैर क्यों ले
दृष्टिगोचर फल अगर हो
श्रम से तब ही बैर क्यों लें

सब प्रलय हैं ह्रय, कोई अब मार्ग में दलदल नहीं है
मृत्यु कोई हल नहीं है

-


Fetching धीरज सिंह नागवंशी Quotes