आदित्य गौतम   (बूदडबद)
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Joined 7 November 2019


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आँखें गलनीं हैं,
बेह जानीं हैं
ज़िन्दगी है क्या?
क्या कहानी है?

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रुखसार सुन, गुन गुनाते लबों को
नमक काऽऽ ठिकानाऽऽ दिखा दोऽऽ
नैनों सुनो ख्वाबों की मरीचिका का
कहाँ हैऽऽ ठिकानाऽऽ बता दोऽऽ

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इश्क तुमसे क्या लड़ाए?
हम खुदी से लड़ रहे हैं
जाने किधर को बढ़ रहे हैं

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मेरी नब्ज़ें ज़रा परखो मेरी आँखो में भी देखो
ये आलम बदहवासी का समझ के पार हुआ है

....Completes in captions....

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अनंत प्रकाश वर्ष दूर
अपने ही गुरुत्वाकर्षण में टूटता
ब्रह्माण्ड का प्रचण्डतम् प्रकाश पुंज.....

... अनुशीर्षक में पढ़ें...

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15 AUG 2023 AT 11:40

प्रथम चुंबन करने वाले होठों ने जब झिड़का
मैंने लपेटी वासना, उसने त्याग दिया लालच!

अपना समर्पण कर उसने बाँधा आलिंगन
मैंने लाँघी देहरी
और 'डर पर विजय' में शौर्य पाने का लालच पा
हिंसक हो गया!

जब छूटती बाहों ने पकड़ को झटका
उसने उम्मीदें बिखेरी और
ज़िद गँवा कर भी बचपन बचा लिया!
मैंने जाना, 'जाने से रोकने पर ऊँचे हुए अहम' को

अंत में खुशी तलाशते मैं मूरख मुस्काने का अभ्यास करता
बोधी के नीचे बुद्ध बन मूर्खों से घिर गया
और मेरी यशोधरा ने इस बिखराव में पा लिया एकांत-ईश्वरत्व!

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23 JUL 2023 AT 23:04

आज का कृष्ण

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दूर से भी पास लगे, पास जैसे पहलू में
साँस की भी आँच लगे हाए कैसे रह लूँ मैं
कोठर में कालिख सी माया में धंसता मैं
हीरे को पाने को भीतर घुस तह लूँ मैं।

या माया पति हो लूँ, या माया हो जाऊँ
मन धन के खूँटे पे, तन धन सब लटकाऊँ
नित नित ही हारूँ नित मन फिर टटोलूँ मैं
जीत न तो हार सही, हार ही फिर हो लूँ मैं।

प्यास यूँ जले मन में, ओठ लिप्सा तर जाए
साँस गुज़रें तन से जो, बाँसुरी सँवर जाए
तन खो कर तन मय, बस धुन तेरी हो लूँ मैं
या तुझको पा लूँ या खुदको भी खो लूँ मैं।

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मेरी कविताओं ने
मन से बगावत कर ली है
उन्हें कलम से ज़ाया नहीं होना...

....अनुशीर्षक में.....

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नैनों की मार से,
इश्क़ औजार से
जेब कटती गई,
मैं ठगाता रहा।

उसकी मुस्कान से
होठ के बाण से
खर्चा ख्वाबों का
अपने चलाता रहा।— % &गाड़ियाँ छोड़ के
कोसों पैदल चला
राह मंज़िल के
ख्वाबों से, सजती रही

सफर में जो मैं था
भँवर को भी जिया
लहर सा,
सहला के साहिल को
जाता रहा।— % &साँस चलने से ही
वंशी बज जानी थी
राधा सी अधरों पे
वो भी सज जानी थी

साँस की ताप से
ताप दे कर उसे
प्रीत विरहा
मैं दोनों
जलाता रहा।— % &अंगुलियों से कहीं
पाश टूटा नहीं
नैनों ने भी कहाँ
मिल सम्मोहन रचा

नैन मूँदे किए
वादे कल के लिए
आज समर्पण
पर उसके
लुटाता रहा।— % &जीता जब भी जहाँ,
सबने हारा कहा
मुझको हँसमुख
और किस्मत का
मारा कहा

राह चुनता गया,
'राह-चलता' कहा
मैंने पाया
सब सोचें
गँवाता रहा।— % &

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