लोग बदल जाते हैं।दूसरों की कही हुई बातों से
उन्हें फर्क पड़ता गुज़रे हालातों से
लोग बदल जाते हैं।
मैं नहीं बदला...हर उम्र,हर मोड़,हर पड़ाव
लगभग हर हालातों से गुज़रा मैं,
पर ना बदला मैं
किसी दुख से,किसी सुख से या किसी के ज़ज्बातों से
कठोर मेरा हृदय नहीं,हृदय में बस प्रेम है।देने वाला प्रेम,
वो प्रेम नहीं,जो पाने की अभिलाषा रखता हो।
कठोर तो मेरी बुद्धि है,जिसमें अभिलाषा किंचित,
किन्तु चतुराई और मूर्खता
दोनों ही समान रूप से भरपूर उपलब्ध हैं।
चतुराई से सब कुछ नियंत्रित करता आया।
जो न हो सका उसे मूर्खता से छोड़ता आया।
लोग बदल जाते हैं!जाने कैसे?
शायद धीरे-धीरे,धीरे धीरे उनके मनोविचार बदल जाते हो।
दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाता हो।
जीने का तरीका बदल जाता हो,सब धीरे-धीरे
एकाएक तो भूकम्प आते हैं,सुनामी आती है,कयामत आती है।
जो सब मिटा जाती है।
बदलाव की चाल तो धीमी ही होगी।लोग ऐसे ही बदल जाते हैं।
पर मैं नहीं बदलूंगा।क्योंकि,हृदय बदले जाते हैं।
बुद्धि तो बस मिट जाती है!हमेशा के लिए...
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