Ziddi Satya  
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Practicing my mind..
Joined 9 February 2017


Practicing my mind..
Joined 9 February 2017
18 DEC 2017 AT 9:58

ऐ खुदा! क्यों ज़िन्दगी से अनजान हो जाता हूँ
'अजनबी मैं' से,मैं बड़ा परेशान हो जाता हूँ

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6 JAN 2021 AT 9:24

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी भर समेटता रहा,
पर असली कोशिश पिछले साल ही समझ आया ..
कौन कहाँ कैसे आज़ाद था,
सबको पिंजरे का हाल भी समझ आया ..

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10 SEP 2020 AT 22:18

मैं ज़माने में खुश था..
फिर एक दिन..
ज़माने ने मुझे खुश रहना सिखाया,
अब मैं खुश रहता हूं..
ज़माने के लिए..

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5 JUL 2020 AT 22:31

~* ख़्वाब *~
मैं अकेला ख़्वाब लेकर ,चल रहा हूं आज लेकर
ख़्वाब तो सब एक ही है,बंट गया क्यूं आस लेकर..

एक ख़्वाब उस तरफ है,एक ख़्वाब में जी रहा..
ख़्वाब ही में ज़िन्दगी, ख़्वाब ही में बिक रहा..

जब परोसू ख़्वाब को मैं, ज़िन्दगी के सामने,
ज़िन्दगी डरने लगी फिर,ज़िन्दगी के सामने,

रात, चांद, चांदनी..सब रखी है ताख पे,
टिमटिमाते ख़्वाब को,रख दिया है ख़ाक पे

लौ जला के ख़्वाब के,उन ख़्वाब को मिला सकूं,
जब जगूं मैं नींद से, तो ख़्वाब को जिला सकूं..

ख़्वाब मेरी रोशनी, ख़्वाब ही मशाल है,
ज़िन्दगी जब खत्म हो,तो ख़्वाब जैसा हाल हो.

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14 JUN 2020 AT 23:34

एक ज़रा सा ख्वाब लेकर,
सो गया फिर आज लेकर..
फिर जगूंगा, ख्वाब होगा..
तुम आ जाना यथार्थ लेकर..

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26 MAY 2020 AT 0:37

~ * चार लोग, चार बातें *~

क्या लिखूं मैं भला,रूद्र के उस रूप को..
क्या कहूं मैं भला,कोप के उस धूप को..

चार लोगों के जुगाड में जीया ये ज़िन्दगी,
चार लोग, चार बातों से भरा ये ज़िन्दगी..

चार ही तो ऋतुयो का पान सब कर रहे,
चार ही तो युगों का गुणगान सब कर रहे,

कौन ऐसा है भला, जो नियमों से ना बंधा,
हमने बनाए नियम सारे, आज वो भी ढह रहे..

दोष क्या दूं ज़िन्दगी को, क्या कहूं इस जश्न को..
ज़िन्दगी, क्या शर्त है बस, क्या हल दूं इस प्रश्न को..

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9 MAY 2020 AT 23:13

राह कितने मिले थे, फिर भी एक ही मेला है..
जनाजे सैकड़ों तो है, सफर फिर भी अकेला है..

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23 FEB 2020 AT 2:20

मैं खेल लेता हूं कभी कभी चांदनी के साथ,
पर रात अब भी अंधेरी ही रखता..
सूरज आएगा ही..ये पता रहता..

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1 FEB 2020 AT 23:12

फिलहाल तो हाल ऐसा है कि
कोई हाल ना बता पाऊं,
कोई हाल बता भी दिया,
तो ' बेहाल' बता ना पाऊं..

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1 FEB 2020 AT 23:05

मैं डूबता चला गया उसी समंदर में..
जिसके पानी से मैंने आग बुझाई थी...
मैं फंसता चला गया उसी बवंडर में..
जिसकी झोंको से मैंने लौ जलाई थी..

अब समंदर में बवंडर है, वो भी.. दिल के अंदर है..

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