खर्च कर दी कितनी ज़मी तूने मंज़र-ऐ-ख़्वाबों को बनाने में...जो कुछ पैरों के नीचे दे देतातो हम भी सपने देख आमीन कह लेते... - Zaira
खर्च कर दी कितनी ज़मी तूने मंज़र-ऐ-ख़्वाबों को बनाने में...जो कुछ पैरों के नीचे दे देतातो हम भी सपने देख आमीन कह लेते...
- Zaira