24 APR 2018 AT 17:16

खर्च कर दी कितनी ज़मी तूने
मंज़र-ऐ-ख़्वाबों को बनाने में...
जो कुछ पैरों के नीचे दे देता
तो हम भी सपने देख आमीन कह लेते...

- Zaira