Roli Abhilasha   (अभिलाषा)
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Joined 16 May 2017


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19 APR AT 11:35

सुबह आँखें दो मौतों की ख़बर से खुलीं. पहला बुआ का बेटा दूसरा चाचा का. अचानक हुई मौतें एक सदमा ही तो होती हैं. सब एक दूसरे को फोन कर रहे पर सांत्वना के शब्द निकलने से पहले ही सब्र छलक जा रहा है. मेरी आँखों के सामने रह रहकर भइया का चेहरा, उनके संग बिताये पल याद आ रहे.
इस दुःख को मैं व्यक्त कर पा रही हूँ क्योंकि यह हादसा मेरी मा_सी के परिवार में घटित हुआ. वेदना मुझ तक छनकर आ रही है. क्या हाल होगा उनकी पत्नियों, माँ पापा और बच्चों का! काँधा देने वाले बँट जायेंगे. आधे इस परिवार को हौसला देंगे आधे उसको.
नियति न तो नीतिगत है न ही स्वीकार्य.

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17 APR AT 22:50

दुःख के तौलिये से
प्रेम की देह मत पोंछना

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17 APR AT 12:17

जो बात आप किसी को डिलीवर करना चाहें और वो समझ न पाये, वह बात कन्वर्सेशन न होकर मात्र एक स्टेटमेंट बनकर रह जाती है

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12 APR AT 12:01

प्रेम की उमंग ऐसे
विस्मयादि बोध जैसे
माह माह फाग चढ़े
यदाचरित शील बढ़े
प्रेम विरह अतिशयोक्ति
क्षार की प्रक्षेप युक्ति
भीजे प्रेम कामरी
प्रेम न हो परित्यक्ति

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8 APR AT 15:54

क्या तुमने दुःख आर्डर किया था,

नहीं न?

फिर रिसीव क्यों करते हो?

मुँह फेरो दुःख की प्लेट से

मत सोचो किसके हिस्से जाएगा.

वो भुगते जिसने यह रेसिपी बनायी.

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11 FEB AT 23:00

दो तिनके भले ही दो अलग-अलग किनारों से नदी में गिरें पर बहाव में बहते एक ही ओर हैं. बहते-बहते कब एक दूसरे के साथ आ जाते हैं, नहीं जान पाते. भले ही उनका प्रयोजन यह नहीं था पर नियति तो यही थी.
प्रयोज्य बनो, दृष्टा नहीं!

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25 JAN AT 20:35

तुम्हारा लिखा हुआ पढ़ना
जैसे स्फटिक की बिखरी हुई माला के
मणि चुनना

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1 JAN AT 19:27

मैं
तुम्हें
"तुमको छोड़कर जाने का"
उपहार देकर जा रही हूँ

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25 DEC 2023 AT 11:43

मेरी 'हाँ' अगर एक ज़िद रही
तो 'न' भी मेरा अडिग रहा— % &जाने 24 का सूरत-ए-हाल क्या होगा— % &

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