11 MAR 2018 AT 22:32

मुझको तेरी कशिश मुन्तज़र मुन्तज़र
मेरा नौहा- कुनाँ और तकक्बुर तेरा
वस्ल की चाहतें कल्व म़फरकत
तू तो अनजान है तुझको जा़हिर कहाँ

तू फ़ारिग है कुर्बत -ए- गै़र के लिये
फिगार यार के लिये तुझे फरागत कहाँ
त़गाफुल के बहाने रंजिशे मुझसे ना कर
मुझको सब है खबर तू मरासिम कहाँ

में दयार यार तेरे ये रिवायात शायद
सिफ़र क़फस इज़्तिराब तबस्सुम से लादे हुए
ख्वावदीदा मोहोव्बत अदावतें हरीफ़ी
बेवफ़ाई भी मुझे तेरी हासिल नहीं

ज़र्द शवनम टपकती नये घावों से
बीती रात मुझे तू इस कदर सताता रहा
तेरे सौ रहनुमा मुख्तलिफ मुख्तलिफ
मैं तेरी राह में नज़रे बिछाता रहा

मुझको तेरी कशिश मुन्तज़र मुन्तज़र
तू आँखें किसी से मिलाता रहा ।

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