उंस की क़ासिद है ये
इस नज़र की बंदगी
आपकी ख़्वाहिश से रंजिश
कर रही है जिंदगी
इश्क की तासीर ग़म है
तल्खी यूँ तो आम है
शगुफ़्ता हो जो तबस्सुम
कामिल तब ये शाम है
आपके चेहरे की बरकत
रेशमी सा नूर ये
हसरतों का है तमाशा
बे-हया अवाम है
इत्तिला कर लीजिये
इस गै़र की मौजूदगी
आपकी महफिल में यूँ तो
रोज़ कत्ल-ए-आम है
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