मैं तुम्हारे साथ एकांत में अपने विचारों संग स्वच्छन्द विचरण कर पाती हूँ,
क्योंकि तुम मुझे देते हो मेरे होने का पूरा अवसर।
मैं शांत, मूक क्षणों में जीती हूँ, तो तुम उन क्षणों में मेरे डैनों को सहलाते हो।
मैं खिलखिलाती हूँ तो तुम मुझे देख अपनी हँसी से हमारी संगत को और दृढ़ बना देते हो।
पानी में छपाक मारती मैं, जिसके हर पग आगे बढ़ने से पहले तुम माप लेते हो गड्ढों की गहराई, ताकि न लगे कोई चोट मुझे,
तो कभी पीछे रहकर सजग रहते हो कि मैं फिसल जाऊँ भी तो तुम हो मुझे गिरने से पहले ही थाम लेने को।
प्रेम कालांतरों से पूर्ण है, प्रेम दो प्रेमियों के मिलते ही पूरा हो जाता है।
और वह पूर्वाग्रहों का ऋणी नहीं, वह स्वतंत्र होता है सभी आशंकाओं से।
जब प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्रेम में उपहार स्वरूप आकाश देता है,
उसपर इंद्रधनुष बनाने को प्रेमिका घोलती है वो सारे रंग जिनसे प्रेम चरितार्थ हो जाए।
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