मैं भारत हूँ,
हाँ वही भारत जहाँ लोग चीनी मोबाइल से स्वदेशी भारत की बात करते है,
हाँ वही भारत जहाँ अरबों की मूर्तियाँ चीन से मंगवाकर आत्मनिर्भर भारत की बात की जाती है,
हाँ वही भारत जहाँ BSNL समेत दर्जनों कंपनियां को दफ्न कर एक गैर सरकारी टेलीकॉम कंपनी को खड़ा किया जाता है,
हाँ वही भारत जहाँ रोज करीबन 7000 लोग भूख से मरते हैं,
ये वही भारत है जहाँ अर्थव्यवस्था की विकेंद्रीकरण के नाम पर देश में गिने चुने कम्पनियों के आधिपत्य को सराहा एवं स्वीकारा जाता है।
ये वही भारत है जहाँ के स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा के गाँव तक को पीने का पर्याप्त पानी नशीब नहीं है ।
मैं बेषक अपने समृद्ध भारत की दर्शन करना चाहता हूँ लेकिन क्या उस भारत की नालन्दा विश्वविधालय का दर्शन करना उचित है जहाँ 40% से अधिक अशिक्षा मौजूद है?
क्या उस भारत की भाखड़ा बांध को सराहना उचित है जहाँ करोड़ो लोगों को आज भी स्वक्ष जल नशीब नहीं है?
खैर घाव से भरी तन को अक्सर स्वदेशी भारत , आत्मनिर्भर भारत नामक मरहमों से ढकने की कोशिश की जाती है।
लेकिन जब तक आखिरी छोर में बैठे व्यक्ति को उसका मौलिक अधिकार नहीं मिल जाती तब तक हर परियोजना हर एक भाषण महज एक ढकोसला है जो भारत भूमि को सदैव घायल सदैव कलंकित करती रहेगी।
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