मोहब्बत के परवानों को भला जंग कहां
सिर्फ हौँसले पस्त होते है इनके उमंग कहां
गाते फिरते है दीवानों की तरह यहां वहां
ये वो परिंदे हैं आजादी के इनमें रंग कहां
जब ये शुरूर में होते हैं तो फजायें भी साथ देती है इनकी
ये परवाने सिर्फ़ उड़ना जानते हैं इन्हें चलने का ढंग कहां
ये दुश्मनी रखते हैं सदा ज़ेहन की आजमाइशों से
इनका दिल बैत-ए-खुदा हैं जिसमे संग कहां
उरूज होती हैं तमन्नाएं इनकी घड़ी हर शाम "मीर"
ये ख्यालों की चादर ओढ़े हैं इन्हें जमाने का ढंग कहां
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