Vivek Shahi   (Shahi)
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Electronics Engineer.
Sarcasm Lover.
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Joined 2 April 2017


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16 SEP 2019 AT 3:16










प्रेम काफी नही है।
मजबूरी भी चाहिए।

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8 SEP 2019 AT 0:36

वो एक आदत नही जाती।
जिस आदत का पोषक।

आपकी रोज़मर्रा की तमाम छोटी-छोटी आदतें है।

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13 JUL 2019 AT 23:13

और अचानक अापको लगता है कि,
बेहतर बनना आप नही चाहते।
आप बस शांत बैठना चाहते है।
बगैर किसी फ़िक्र के।

जैसे आप हर चीज़ से संतुष्ट होना चाहते हो।




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14 JUN 2019 AT 19:38

जिसे तुम प्रेम समझती थी।
कवितायों में,
वो प्रेम नही।
बस भाषाओं की,
छोटी सी भूल है।
शब्दो मे अगर प्रेम पनपा होता तो,
संसार की सारी समस्याएं
बस भाषा की समस्या नही होती।


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22 MAY 2019 AT 22:56

तेरी बाते सुनकर इतना ही गुमां होता है।
मर जाऊं या जीने के और बहाने ढूंढ लूँ।

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22 MAY 2019 AT 22:43

फर्क बस इतना सा ही है।

मर्द रिश्तो की डाल से
छलाँग लगाना जानते है।

और औरते उसी डाल पे
घोंसला बनाना।

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22 MAY 2019 AT 20:04

शब्दो के संग जब लोग अकेले बचते है।
तब वो अपने व्यंग के ही पीछे छुपते है।







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27 MAR 2019 AT 2:29

मैं आध्यात्मिक होते होते रह गया।

इसीलिए मैं शराबी हो गया।

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25 MAR 2019 AT 1:57

एक ही स्रोत से निकलती है।
ह्रदय की सूक्ष्म धारा।

कभी दुःख की अनुभूति बताई जाती है।

कभी प्रेम का असीम आनंद।



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24 MAR 2019 AT 1:57

इश्क़ में दिल जरा शिताबी तो .हो।
आशिको का ख़ाना-ख़राबी तो हो।

वो गए दिल के कोफ्त के जानिब।
बस दिल का शीशा हबाबी ना हो।

शब में तमाम गुफ़्तार किससे .करे।
क़मर भी हमारी तरह शराबी तो हो।









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