विष्णु कोल   (विष्णु कोल)
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Joined 20 March 2018


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Joined 20 March 2018
21 OCT 2023 AT 20:15

अपने आखिर समय में तुम्हे अपनी
अंतिम सुबह कभी नही याद आएगी,

आँख मुंदने से पहले जो अंधेरा
तुम्हारी आँखों पर छाएगा वो उजला होगा,

कोमल पुष्पों की परवरिश से आह्लादित शाखें
जब सुखककर अपनी अंतशैय्या पर लेटी होंगी

और समय की गति से सब कुछ तितर-बितर हो रहा होगा

तब भी....तुम्हे करनी होगी सृस्टि की सबसे सुंदर रचना
और इस अनन्त शोक में भी तुम लिखना....उम्मीद'

कभी हार न मानने की...अपने अपार दुःख में भी ।

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28 SEP 2023 AT 22:01

एक हद है जिसके पार कहाँ जाती हैं
धड़कने चीखती...चिल्लाती हैं मर जाती हैं,

मुझे पता था मेरी मौत तमाशा होगी
जिंदगी तू...क्यूँ रोते हुए घर जाती है,

कभी मेरा हाथ पकड़ पास बिठाते मुझको
जिंदगी यूँ भी गुजरती है....गुजर जाती है,

न जाने किस दिन निभा जाएं वो वादा अपना
इस वादे से तो अब साँसे भी मुकर जाती है,

कैसे सिमट रही मेरे कमरे की दीवारें सारी
ये तड़प नई नहीं...ये तन्हाई बस सर खाती है,

मेरे आगे ये किसको कैद कर रहे 'विष्णु'
कौन है ये शख्स जिसकी शक्ल तुम पर जाती है,

उसे मालूम है मुझमें कहाँ दफन हूँ मैं
वो मेरे जेहन में आती है...इक फूल... धर जाती है ।।

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5 JUL 2023 AT 0:29

मैं कोई भी रात सोना नहीं चाहता
नही चाहता अंधेरे में मेरी उपस्थिति कोई और पढ़े

दुनिया से आगे निकल जाने की जिद में
जब स्वयं को प्रेम करना कठिन हो रहा
तब भी मुझे भरोसा है तुम्हारे कहे पर
"आगे जो होगा इससे बहुत अच्छा होगा"...शुक्रिया

मैं अपनी कामनाओं का इससे अधिक सजीव
उपसंहार और 'पुनरउत्पत्ति' नही लिख सकता था ।

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18 APR 2023 AT 2:51

तुम्हारी आवाज
यकीनन एक रोज मेरे कानों से उतर जाएगी

मुझे पता है
एक रोज मेरी सारी कविताये सूख जाएंगी

उस रोज तुम दूर...बहुत दूर...कर लेना अपना स्पर्श
मेरे डायरी के पन्नों से....मेरे जीवन से...

इस तरह तुम बचा पाओगी
खुद को सूखने से.......मेरे प्रेम से ।

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4 MAR 2023 AT 12:04

....कितनी ही उम्मीदे....ढेरों उदासियाँ
इंतजार की घड़ी में सिसकर और भी मीठी हो जाती हैं ।
ये बात मालूम ही तब हुई जब तुमसे मिलना हुआ...पहली बार

तुमसे मिलना...
कहीं अधिक मुश्किल था तुमसे बिछड़ने से
वर्षो का इंतजार दो आँखों मे समेटना
भला किसी के लिए भी आसान कैसे हो सकता है

मालूम..? उस रोज मेरी खुशी का जायका
तुम थी....वो मोटे मोमोज नही ।😅
सारी शरारतें सम्हाल कर रखी हैं....तुम्हारे लिये

तुम्हारे इस...'और बताओ'...के सवाल ने तो
और भी सारा कुछ भूला दिया
कितना कुछ याद कर आया था मैं....'सब ठीक है'...के अलावा

नए शहर में पुराने दुखों पर....साथ रोते...हँसते
हम...अपने अकेलेपन से आगे निकल जाना चाहते हैं
वक्त के साथ हम कितना कुछ
दफन करना सीख जाते हैं...है ना ?

सड़क के पार...चलते...पलटते...उलटे पाँव
आँखे तुम्हे जी भर कर देख लेना चाहती थी... थोड़ी देर
थोड़ी दूर.....थोड़ी और...!!

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21 DEC 2022 AT 19:38

अकेले की दुनिया,
एकदम सादा और एक रंगी है

ये फीकापन अब मेरा जायका हो चला ।

अब मैं देखता हूँ तो लगता है
कैसे धुआँ भर आसमान

साथ तय करेगा
मेरे अकेलेपन का अंतिम सफर ।

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12 NOV 2022 AT 18:12

जब मैं उसके किसी एक पृष्ठ को
हद से अधिक समय तक देखता हूँ

वो समझ जाती है कि
अब मैं होश में नही हूँ

मेरे माथे पर प्यार से एक थपकी देकर
मुझे सुला देती है

किताबों को इस तरह
प्रेम में नही पड़ना चाहिए ।।

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19 OCT 2022 AT 17:12

या खुदा...कह दे वहाँ...मौत मुझे ले जाये
जहाँ से...ना मै लौटूँ...ना मेरी यादें आये...,

लिपटकर रोये रातभर मेरे साये से रोशनी
आँखे पिघलती हुई...इक रश्म निभाने आये ,

मैं खुश था कि हर जगह से मिट रहा हूँ मैं
जहाँ नही था, तुम...वो घर भी जलाने आये,

उसे कहो...कि अबकी बार ना सताए मुझे
अबकी मै रूठूँ तो 'मेरी 'जान'...ले जाने आये,

मेरी बेचारगी...उम्मीद खा गई मुझको
धुँआ हुए हम...मेरे भी हाथ पैमाने आये,

तुम क्यूँ...सिरहाने मेरे सर पटक रही हो कहो
तुम ना कहती थी मुझको...रोग ये...जाये..जाये ।।

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28 AUG 2022 AT 20:44

बड़े बेबस बड़े लाचार...हुए हैं...ये ख़्वाब मेरे
ख्वाहिशे मर रही और सिक्के गिनते रह गए हैं ख़्वाब मेरे,

अब तो तरस आता है समझदारिओ पर इनके
किसी भी चीज के लिए रोते नही हैं ख़्वाब मेरे,

पकड़कर हाथ...आंसूओ का...अपनी हद से बाहर निकल रहे
इन्हें पीटो....बहुत....बिगड़ गए हैं ख़्वाब मेरे,

उसकी चाहत थी....हर खुशी के लिए हाथ फैलाया जाए
नसीब ये देख....खुद_खुशी कर लिए फिर ख़्वाब मेरे,

सुना हर मौसम ही दुःख की छत टपकती रहती है
जाने किस दूर शहर जा बसे हैं ख्वाब मेरे ।।

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24 JUL 2022 AT 10:52

छोड़ना...गलती नहीं..

हाँ..!
हाँ मेरा इरादा था

चाय बन गई थी सरदर्द मेरी..!!

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