जिज्ञासु(विष्णु)   (©जिज्ञासु “vishnu”)
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Joined 12 January 2019


Joined 12 January 2019

इकट्ठा कर रही
बेहतरीन अल्फ़ाज़
फिर लेगी एक दिन
हल,फावड़ा और कुदाल।

ग़ज़ब की शख़्सियत हैं
साहित्य की बंजर भूमि पर
वो बनेगी महान किसान

और

वहाँ अंकुरित होंगे
एक दिन हैं सुगंधी,सतरंगी
कविता के कानन।

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ज़र्रा-ज़र्रा हवाओ का,
हरा किया सिंचकर,
अल्फ़ाज के दरिया को
मुक़ाम नया दिया हैं।
आप ने सरलता से
इतना गहरा लिखकर,
बहुतो को दरिया का
गोताखोर किया हैं॥

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मेरी मूढ़ बुद्धि ने
हमेशा मृणाल शब्द का अर्थ
मात्र “कमल नाल” से लिया।
मुझे मेरे हिंदी शब्दकोश ने यही तो सिखाया था।

लेकिन

वास्तविकता में
कीच से जीवन का अवशोषण कर
देव पुष्प कमल को चेतन्य करती
जीवन की परम परिभाषा हैं “मृणाल”

जैसे शिशु के लिए “गर्भनाल”

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अधिकतम पुरुष
अपनी माँ का सम्मान इसलिए नहीं करते कि
वो एक “स्त्री” हैं।

वो इसलिए करते हैं कि
वो उनकी “माँ” हैं।

स्त्री समानता की लड़ाई
बीरबल की खिचड़ी है।

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स्त्री!
इस बार जब भी तुम माँगों
तब सुख मत माँगना।
तुम संतुलन माँगना,
तुम्हें सुख स्वतः प्राप्त हो जाएगे।

ईश्वर को संतुलन प्रिय हैं।

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खामोशी से कटता नहीं मुहब्बत का रास्ता।
सैकड़ों नज़र की हजार लुग़त होती हैं इस पर ॥

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अपना एक हुस्न हैं मोहब्बत की रिवायात का।
ये बदनामी का लश्कर साथ लेकर चलती हैं॥

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दिल्लगी के हज़ारों रास्ते थे उसके लिए।
उसका दिल मेरे अफ़्कारो पर आया था॥
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जो मुझ सा होकर मुझ में हो गया था।
अब मेरा दिल भी मक्कारी पर आया था॥

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उसने मुस्कुरा कर तो मुझे मुश्किल में डाल दिया।
उस के आँखों के तेवर मुझे अपनी हद बताते हैं॥

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जब तुम यह तय कर देते हो कि
तुम्हें आने वाले दिन क्या-क्या करना हैं।

तो

उस समय तुम वास्तविकता में
ईश्वर के सामने
समकक्ष खड़े होते हो।

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