वो शाम सा ढलती नहीं,
सुबह सा आगाज़ लेती है....
मझे सुबह उठाने को,
वो पंखा बंद कर जाती है,
वो पांच को नौ बताती है,
"नालायक अब तो उठ जा",
मुझे ऐसे आवाज़ लगती है....
वो मुझे ओरो से अच्छा जानती है,
सबको धोखा मेरी हसी दे जाती है,
"क्या हुआ बता मुझे???"
वो मुझसे ऐसा पूछ जाती है....
कभी कभी खूब गुस्सा होती है,
फिर भी ले खा ले,
बोलकर खाना दे जाती है....
भिन्डी पसंद नहीं मुझे,
इसलिए वो थोड़ी सी ही सही,
दूसरी सब्जी जरूर बनती है,
यार मां तेरे हाथ के खाने की,
बहुत याद आती है....
मुस्कुराती है मुझे आगे बढ़ता देखकर,
और उसकी हसी मेरे दिल को खुश कर जाती है.....
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