Vishakha Rajpoot   (~vrc (vishakha))
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Creative by mind, poetic by heart, HR by profession!
Joined 29 May 2017


Creative by mind, poetic by heart, HR by profession!
Joined 29 May 2017
YESTERDAY AT 3:40

काश के मैं समझा पाऊ कभी
कितने ख़ुशक़िस्मत है वो
जो परिवार के साथ ख़ुशी मानते है
त्योहार हो या जन्मदिन
सालगिरह हो या प्रमोशन
घर के सब सदस्ये साथ बैठ के खिलखिलाते है
जब कभी दूर रहना हो ज़िंदगी में उनसे
वो ख़ुशियों के गिने चुने दिन भी
फ़ीके नज़र आते है
समझ सको तो समझना
बर्तन तो खटेंगे ही
मगर सजी हुई थाल में परसने के ठाठ है

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13 APR AT 0:09

थक गई है ज़िंदगी भागते भागते
कोई तो GLUCON-D पिलाओ
Energy के वास्ते।

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9 APR AT 7:16

अब वहाँ जाना अपना सा नहीं लगता
सब कुछ हो के भी कुछ सच्चा सा नहीं लगता
मौसम बदले साल बदले। बदले अब मिज़ाज भी
कुछ छुपाते रहे कुछ ना गलती माने आज भी
वहाँ जाना अब अपना सा नहीं लगता
है वो चंद पुरानी दिवारे
जिनपे रंग अब उनसे मिलता है
ढल गए अब है वो लकड़ी के दरवाज़े भी
जो सीधे सचे खड़े होते थे
ना हवा में अपना पन रहा
ना रही वो सुहानी शाम सी
अब वहाँ जाना अपना सा नहीं लगता
धुंधला गई है सबकी शान भी

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23 FEB AT 8:26

कोई जादू तो ज़रूर है अल्फ़ाज़ों में,
यू ही नहीं छू जया करते कुछ लेख !

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20 FEB AT 5:28

It’s a union
Where two completes one
Where left meets the right
Where an express train meets a passenger
Where wisdom meets an enthusiast
Where a fame meets a common
Where nature meets a wild
Where laughter meets a smile
Where hands hold on to each other
Where they learn about each other
Where they pave path together
Where they give it a chance
to stand a strength lifelong

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11 FEB AT 21:26

मौक़े तो हमने कई दिये थे उन्हें सब ठीक करने के,
उन्होंने नजरअंदाज़ी को तवज्जो दी।
हमे कहा आदत है हुक्म चलाने कि,
हम उनकी नज़रअंदाज़ी को उनका फ़ैसला समझ बैठे
अब सिसकते है वो के दरम्याँ बहुत है
हमने तो बस एक कोना माँगा था
ना दिया तो क्या, आज वहाँ वीरानियाँ बस्ती है।

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5 FEB AT 9:55

मेरे ख्यालों में कुछ ईस कदर शामिल हुई शाम
कब रंगीन आसमान एक रंग हुआ
पता ही नहीं चला

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1 FEB AT 20:50

दिलों को दस्तक दे रहा
किसी के मन को लुभा रहा
किसी को सता रहा
फ़रवरी कि महीना
बिछड़ो को मिला रहा
कोई घूम रहा तलाश में
कोई आज़मा रहा तराशने को
कोई फ़िकर से जूझ रहा
कोई बस छल्ले उड़ा रहा
ये फ़रवरी का महीना
कुछ तो फ़रमा रहा

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30 JAN AT 8:13

काफ़ी मचले से मालूम पड़ते हैं
कभी प्यार से गले लगाते है
कभी लाख बुराई करते है

मेरी कहानी के सब किरदार
ऊल जलूल मालूम पड़ते है
कभी ठहाके लगाते एक साथ
कभी सालन से तीखे झिक्ते है

मेरी कहानी के सब किरदार
फिर भी मुझे अज़ीज़ लगते है!

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10 JAN AT 7:03

कुछ ना माँगने पर भी जब कभी कुछ मिलजाए,
बिन उम्मीद जब कोई किरण चमक जाए,
तो यक़ीन मानिए बहुत खूबसूरत होता है।
के हर कोई ना हक़ जमाता है,
ना हक़ माँगता है,
होती है अगर कभी आस किसी से,
उपरवाले का पता उसको कंठस्थ होता है।

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