Vineet Ramteke   (RajVin)
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Joined 20 November 2017


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Joined 20 November 2017
8 MAR 2022 AT 9:44

25 वह बल और प्रताप का पहरावा पहने रहती है,
और आनेवाले काल के विषय पर हँसती है।
26 वह बुद्धि की बात बोलती है,
और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।
27 वह अपने घराने के चाल चलन को ध्यान से देखती है,
और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।
28 उसके पुत्र उठ उठकर उसको धन्य कहते हैं,
उनका पति भी उठकर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है..

नीतिवचन ३१

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21 JAN 2018 AT 17:35

तुम मुझे अपने दर्द भेजो हम दवा करेंगे
तुम मुझे अपने सपने केहदो हम दुआ करेंगे

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30 JUL 2021 AT 0:31

ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं,
ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है।

इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है,
रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है।

आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी,
भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं।

घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा,
रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं।

ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है,
ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है।

वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन,
चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है।

हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ,
उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं।

तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक,
थक के लौट, सब अपने घर आते है।

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29 JAN 2021 AT 20:08


रुला दे ऐ इश्क़ मुझे अपने मौसम मे,
मैं भी ज़रा भिगू और बाग़ बाग़ हो जाऊं।

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16 APR 2020 AT 21:38

और भी कोई खुशी हैं क्या तेरे इश्क़ सी?
और भी कोई तकिया हैं क्या तेरी गोद सा?
और भी कोई बाहें हैं क्या तेरे सुकून सी?
और भी कोई नाम हैं क्या तेरे नाम सा?
नहीं, ये कहीं और नहीं।

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16 APR 2020 AT 20:28

घड़ी के काटे कब वही लौट आते हैं,
और उगता सूरज कब ढलने लग जाता हैं,
ताकते तुझे सारा वक़्त लम्हें सा गुजर जाता हैं,
बताओ तुम? कैसे भला कोई इतना भाता हैं।

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14 APR 2020 AT 0:12

No peon, No water,
Was the story of Mr Ambedkar,
He was Jurist, Economist,
Politician and a Social Reformer.
He fight for all,
He worked for all individual,
Some still hate him,
Some call his work' partial.
He believed in humanity,
Gave Constitution 'the best of all'.
Directly or indirectly,
He contributed for you all.
In those days,
what a courage!
He is true
Symbol of knowledge..

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11 APR 2020 AT 16:48

आपके योगदान में भी, नाही कोई कमी हैं,
इसबार आपका घर ही, आपकी रणभूमि हैं।
जो आप सिख गए हो,
औरों को भी सीखा दो,
जो जो आप मिलकर कहना चाहते हो,
उसे थोड़ी देर के लिए पन्नो में जगह दो,
उससे ये एहसास कम न होंगे,
आज ताले लगे हैं जहाँ, उसे कल खोलो,
बंद किताबों में कहानियों,
किस्सो और नज़्म जैसे रहलो,
इसपे पड़ी धूल कल झाड़लो,
खूबसूरती हैं इसकी भी एक अलग,
ये पहचान लो,
पर देखो, तुम बाहर न निकलो।

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11 APR 2020 AT 16:43

जान बचाने भी,
एक जान की जरूरत होती हैं,
हैं इंसान ही,
बस शकले अलग होती हैं,
शुक्रिया करने का,
यही बहुत अच्छा अवसर हैं,
अस्पतालों में, दुकानों में, बैंकों में,
तो कही लड़ रहा, कोई पुलिस अफसर हैं,
कल भूलना नहीं उसे,
आपका आंगन जिसका दफ़्तर हैं,
कोई न कोई काम कर रहा,
आपके लिए दिन दोपहर और रात भर हैं,
देखो, तुम बाहर न निकलो।

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11 APR 2020 AT 16:38

बंद किताबों में कहानियों,
किस्सो और नज़्म जैसे रहलो,
देखो, तुम बाहर न निकलो।
कुछ रोज़ धूप न मिली तो क्या हुआ?
शाम कि वो सैर रह गई तो क्या हुआ?
वक़्त की नज़ाकत को तो समझो,
देखो, तुम बाहर न निकलो।
आज में आज को ही देखो,
कल की कल पर छोड़दो,
जो लड़ रहे हैं बाहर,
उनके लिए दुआ करलो,
उनका बोझ कम नहीं कर सकते,
पर अब उसे उतना ही रहने दो,
देखो, तुम बाहर न निकलो।

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