8 APR 2018 AT 0:51

इन तारीखों के लिफाफों में बंद हो जाती हैं, कुछ यादें।
साल दरसाल उन तारीखों पे खुलते हैं लिफ़ाफ़े।
उसी ताज़गी, लिहाफ़ में घुले हुए कुछ किस्से, कुछ कहानियां।
उन लमहों का वो ज़िक्र,
और बेसाख़्तासी एक फ़िक्र।
फ़िक्र जिसमे जज्बाते मोहब्बत हैं।
फ़िक्र जिसमे एहसासे मसर्रत हैं।
तुमसे बंधा एक राब्ता हैं।
तुझ तक ले जाता हुआ रास्ता हैं।
इश्क हैं, विसाल ए दरिया हैं,
हिज्र है,फ़िराक ए सहारा भी हैं।
कितना कुछ हैं बंद इन तारीख के लिफाफों में।
आज एक लिफाफा फिर खुला हैं।
तुम्हारे जनमदिन का,बहोत कुछ समेटे हुए।
तेरा मुजस्सम लिहाफ़ ओढ़े।

जनम दिन मुबारक हो, मेरी प्यारी........


तुम्हारा राही औरंगाबादी

- राही औरंगाबादी