Vinayak Das   (राही औरंगाबादी)
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Joined 26 February 2018


Joined 26 February 2018
16 APR AT 11:07

'काश ऐसा हो' ये ख्वाहिश भी क्योंकर करे हम।
जो हैं अपने बस में पहल उससे क्यों न करें हम?

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9 FEB AT 2:46

मेरे ही अंधेरों से कराते रहे तआरुफ़ मेरा।
मैं तमाम उम्र चरागों की सोहबत में रहा।

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25 NOV 2023 AT 0:35

माझ्यात स्वार्थ तिचाही, टिकवून ठेव, देवा।
स्वार्थी तुझ्या जगातील आहे प्रिया ही माझी।

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15 NOV 2023 AT 13:50

जो कहाँ हैं मैंने, मेरे खयालों का तर्जुमा हैं।
जो समझे तुमने,मेरे मतलब नहीं हो सकते।

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8 NOV 2023 AT 22:04

- स्वप्नं

नको जोडू नाते कधी वास्तवाशी, नको कास कधिही खऱ्याची धरू।
भले स्वप्न माझे, तुला पाहतो मी, कधीही मला तू नको सापडू।

जरी भास आभास आहे मनाचा, खरे स्वप्नं होणे नसे चांगले,
बरा कैफ चढतो इथे धावण्याचा, नको ना मला तू नको थांबवू।

इथे वास्तवाचा जरा स्पर्श होता, विझाल्या पहा त्या किती तारका।
भली झोप माझी, कशा मोडतो तू, निजवल्या मनाला नको जागवू!

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1 NOV 2023 AT 15:34

किती दुःखे काल्पनिक "राही" शब्दात मांडतो,
पान्हा लेखणीचा पण खऱ्या व्यथेला आटतो।

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31 OCT 2023 AT 12:29

नाळ गर्भाची तुटता,
बाप होई गरोदर।
आणि प्रसव वेदना,
उभा वाही जन्मभर।

नऊ दिस नऊ मास,
माय उदरात साहे,
पण साहणे तयाचे,
जग जन्मभर पाहे।

बाप मायच असतो,
तरी लेकराला दूर,
बाप नारळा सारखा,
फक्त वरून कठोर।

पोर आजारी पडते,
बाप कामात बुडतो।
एक द्वंद्व रोज रोज,
बाप स्वतःशी लढतो।

बाप असे दुर्दैवी,
त्याला रडता येई ना।
उभे घर जरी त्याचे,
तरी कोपरा मिळे ना।

बाई जन्मते रे पुन्हा,
तिला आईपण येते।
बाप रोजचं मरतो,
पण कोणाला कळते?

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18 SEP 2023 AT 17:30

अपनी शिकस्त की हम, क्या ही सुनाए दास्तां...
हारनेवालों की होड़ में भी हम, अव्वल न रहे!!

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6 SEP 2023 AT 20:14

बड़े शहर की रफ़्तार में शरीक होना चाहते हैं।
बड़े इत्मिनान से हम, सुकून खोना चाहते हैं।

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5 SEP 2023 AT 20:47

मेरी खामोशी तो बहोत बाद कि बात हैं।
हो सके तो दिल का ये शोर ही समझ लो।

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