हर किसी के धर्म मे वो कर्म का हि हाथ है, खड़ा जो विरुद्ध सृष्टि के तो हर किसी कि मात है, अधर्म का जो जाल हे वो खुद का पश्चाताप है, पाप में हे जो भरा तो उसका सर्वनाश है!
रात का अन्जाना सा सफर लगता है सपनो कि गाड़ी का ब्रेक फेल लगता है रेडियो पुराने नगमे सुनाने लगता है हाथों मे हाथ उनका साथ लगता है खिड़की से बारिश का मिलन लगता है उठते हि मम्मी कि बालटी का पानी खाली लगता है