हर शाम गुजरती है सहमी सी,
तुम्हारी यादों के साये लिये.
हर बात दब जाती है सीने में,
पुराने कुछ फ़साने लिये.
अश्क़ बहने लगते है अपने आप ही,
नही पूछ पाता उनसे, न ही रोक पाता हूँ.
अपने तनहाई का ग़म मैं न छुपाता हूँ.
अंधेरा छा जाता है फिर,
और कालिख़ ओढ़े आंखों से,
लौटता हूँ हक़ीक़त में.
एहसास होता है इस बात का,
की ज़िंदगी अभी बाक़ी है...
- $VikasPawar$