कभी कभी हर जिंदगी यहाँ, बेरंग सी लगती है सन्न सी खामोशी भी, बहुत कुछ कह जाती है तन्हा हैं हम यहाँ, और भाव इस कदर उमड़े मानो लफ़्ज़ों के बिना पन्नों पर, कहानी सी छप जाती है।
काश ये सूनापन इतना वीरान ना होता इस लम्हे का मुखौटा इतना हसीन ना होता !! शायद बच जाता किसी खूबसूरत तोहफे की तरह जिसे मापा नहीं जाता ख़्वाबों की तरह!! टूट जाता शायद मगर फिर भी अनमोल रहता सागर की गहराई से कई कहानियाँ कहता!!
काफी हैं हम, एक दूजे के लिए बस जीवन में तुम्हारी कमी है, तुम होती तो रंगीन होती जिंदगी तुम नहीं, तुम्हारा एहसास तो है , फिर भी उस रंग से हम वंचित रह गए!!
आज और कल के सफर में भूल गई थी पहचान जिसकी सिमट कर लिपट गई थी ज़मीन से उड़ान उसकी। ऐसा नहीं कि तारा कोई जाते जाते कुछ कह गया हो ऐसा नहीं कि फूल कोई मुरझाने से रह गया हो। खुद को अनदेखा करके जाने कितने मौसम देखे खुद का समय गवा कर चूल्हे पर लाखों ख्वाब सेके। कुछ तो बदला है जमाना या शायद वो खुद बदल गई है अपनी लड़की अपनी बहु को हक से लड़ना सिखा गई है। अपने सपनों के बीज लगाकर वो हमें फल खिला रही है जो आज की नारी अपने दम पर दुनिया से कदम मिला रही है !
शाम ढलते ही हर रोज चांदनी में घुल कर कुछ यों आती है, कि बस जाती है दिल में रोज़ नयी जगह बनाकर और फिर हमेशा के लिए ठहर जाती है, जाने इतना संयम तेरी यादें कहाँ से जुटा पाती हैं!!