Veronica Garg   (Veronica garg)
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A poet by heart!
Joined 19 April 2017


A poet by heart!
Joined 19 April 2017
28 JAN 2022 AT 9:41

मेरे शब्द, मेरी कल्पना
मेरे एहसास, मेरी कविता
सब तुमसे हैं। — % &

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1 JAN 2022 AT 15:09

कभी कभी हर जिंदगी यहाँ, बेरंग सी लगती है
सन्न सी खामोशी भी, बहुत कुछ कह जाती है
तन्हा हैं हम यहाँ, और भाव इस कदर उमड़े मानो
लफ़्ज़ों के बिना पन्नों पर, कहानी सी छप जाती है।

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24 NOV 2021 AT 9:40

एक इम्तेहान हमने दिया
एक तुमने,
फर्क़ सिर्फ इतना रहा
हम वफा निभाने को लड़ते रहे
तुम बेवफाई छुपाने को!!

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19 OCT 2021 AT 12:19

मैं तप्ती रेत की तरह
बारिश के इन्तेज़ार में हूँ!
क्या पता,
तेरे आने की बौछार से
इस जिंदगी की धूप में
कुछ पल सुकून मिल जाए!

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5 OCT 2021 AT 18:01

काश ये सूनापन
इतना वीरान ना होता
इस लम्हे का मुखौटा
इतना हसीन ना होता !!
शायद बच जाता किसी
खूबसूरत तोहफे की तरह
जिसे मापा नहीं जाता
ख़्वाबों की तरह!!
टूट जाता शायद मगर
फिर भी अनमोल रहता
सागर की गहराई से
कई कहानियाँ कहता!!

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1 OCT 2021 AT 19:54

काफी हैं हम, एक दूजे के लिए
बस जीवन में तुम्हारी कमी है,
तुम होती तो रंगीन होती जिंदगी
तुम नहीं, तुम्हारा एहसास तो है ,
फिर भी उस रंग से हम वंचित रह गए!!

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17 SEP 2021 AT 10:57

आज और कल के सफर में
भूल गई थी पहचान जिसकी
सिमट कर लिपट गई थी
ज़मीन से उड़ान उसकी।
ऐसा नहीं कि तारा कोई
जाते जाते कुछ कह गया हो
ऐसा नहीं कि फूल कोई
मुरझाने से रह गया हो।
खुद को अनदेखा करके
जाने कितने मौसम देखे
खुद का समय गवा कर
चूल्हे पर लाखों ख्वाब सेके।
कुछ तो बदला है जमाना
या शायद वो खुद बदल गई है
अपनी लड़की अपनी बहु को
हक से लड़ना सिखा गई है।
अपने सपनों के बीज लगाकर
वो हमें फल खिला रही है
जो आज की नारी अपने दम पर
दुनिया से कदम मिला रही है !

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13 SEP 2021 AT 19:18

तिनका तिनका कर के
ये ख्वाब सजाया मैंने,
इसके बिखर जाने की
एक भी वजह,
गवारा नहीं मुझे !!

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24 JUL 2021 AT 13:00

वही हुआ,
ना चाहते हुए भी
हम दुनिया के ढांचों में
कुछ ऐसे ढल गए
कि खुद को आज
पहचान ही नहीं पा रहे!!

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22 JUL 2021 AT 17:05

शाम ढलते ही हर रोज
चांदनी में घुल कर
कुछ यों आती है,
कि बस जाती है दिल में
रोज़ नयी जगह बनाकर
और फिर हमेशा के लिए
ठहर जाती है,
जाने इतना संयम तेरी यादें
कहाँ से जुटा पाती हैं!!

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