यायावर वेद   (©यायावर वेद ©"वेद वाणी")
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Joined 2 October 2017


Joined 2 October 2017

अपने साथ ना होकर भी
तुम्हें खुश देखना
ख़ुद को अच्छा लगता है

वो क्या है कि मालूम था हमें
कि हम एक राह थे
मंज़िल कोई और होगा
और खूबसूरत होगा

और हुआ ये कि
मैं फिर सच निकला
तुम फिर झूठी

बात ये भी है कि
अपने झूठ से तुम परेशान नहीं हो
और अपने सच से मैं घबरा सा गया हूं

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2 DEC 2023 AT 1:46

तो एक क़रार ये रहा कि ख्यालों के कतार में खड़ी कर दें बातें कई और छोड़ दें धागों को बिना बांधे पतंग को। उड़ा देनी हैं ना हमें फिकरें कई, मसले कई और कई बेमानियां। औरों के ज़ेहन में सवाल उठा ख़ुद बैठ जाना है किसी बरगद के नीचे कुएं के पास खाट पर। ऐसा हो सकता है क्या? कहाँ मिलेगा अब सब। तो सुनो,उड़ जाने दो पतंग को, हवा को और बातों को। हमें क्या हमें तो बस दो पल मुस्कुराना है।

अबकी तुम आओगे तो अदरक से लबरेज चाय पिलाएंगे तुम्हें, वो क्या है ना कि दिसंबर जो आ गया है।

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19 OCT 2023 AT 8:15











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5 OCT 2023 AT 13:54

बात वहाँ भी ना थी
बात यहाँ भी ना थी
शब्द हो गए मौन
हिचकिचाहटों में कहीं
रात बीती खामोश
निःशब्द आगोश में
जो लफ्ज़ ख्यालों में थे
उनकी बात
वहाँ भी ना थी
यहाँ भी ना थी

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7 SEP 2023 AT 15:46

राधे कृष्ण प्रेम की गाथा
चर्चित है जो सारे जग में
अटल अविस्मृत औ धुरी सा
जैसे ध्रुव तारा है नभ में

राधे की बिरह के गीत
कितने कवियों ने गाए हैं
पर देखो कभी कान्हा को भी
दर्द में भी मुस्काए हैं

पूछा लोगों ने जी भर कर
कान्हा गोकुल फिर ना आए क्यों
राधा,मैया और सब भैया
कैसे रहें ना बतलाए क्यों

एक दर्शन है जीवन का जो
उसे भी विरह विष को पीना है
कान्हा की कर्म दुविधा है ये
उसे कृष्ण भी बनकर जीना है

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10 MAR 2023 AT 22:19

बर्फ़ क्यों जम रही
दिल के जज़्बात पर
सूखे जा रहे हैं वक्त
हमारे हालात पर
नींद है पराई
हैं ख़्वाब सोए हुए
ज़िन्दगी अब बता क्यों
लम्हें हैं खोए हुए

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17 JAN 2023 AT 22:48

एक तस्वीर थी ना जाने कितने नज़र घूमे
एक दरिया था ना जाने कितने शहर घूमे
तस्वीर को मयस्सर हुई ना मुकम्मल नज़र कोई
समंदर की तलाश में दरिया भी किधर किधर घूमे

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15 JAN 2023 AT 13:17

वो किसी के इंतजार में
अपनी टेबल पर
ख़्वाबों के फूल उगाया करता था
वक्त ने अपनी रफ़्तार से
उसके चेहरे पर बर्फ उगानी
शुरू कर दी

ये तय है..

एक दिन बर्फ का उगना
बंद हो जाएगा
शायद इंतज़ार नहीं..

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25 DEC 2022 AT 20:27

हम चले भी आते शहर तुम्हारे तो तुम कहां मिलते
गर आ भी जाते नजर तुम्हारे तो तुम कहां मिलते
ये मिलने बिछड़ने के कायदों से तुम कहां वाकिफ ठहरे
हम हो भी जाते हमसफर तुम्हारे तो तुम कहां मिलते

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25 OCT 2022 AT 10:29

घर से निकले तो फिर सफ़र के हो गए
अधूरे ही सही हम कितने शहर के हो गए

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