शहर, जो छुट गए पीछे..
आज उनकी सड़के याद आती है..
जो चेहरे दिखते थे हरदफा़,
आज उनकी शख्सियते याद आती है..
मंज़र देखे थे कितने वहाँ, कितने कदम दोहराए थे..
अधुरे किसी सफर की, वो अनछुई राह याद आती है..
कुछ नुकीली, कुछ मिट्टी सी, कुछ तेज़..
कुछ सड़के थी बारीशी, जो अब भी मानो बुलाती है..
सड़के चाहे हो जैसी, या एक जैसी,
हर शहर का ईत्र बन जाती है..
कभी मंज़िलों की याद दिलाती थी वो..
मुकाम हासील करनेपर वही सड़के याद आती है..
एक और मुलाकात उधार थी जहाँ, वो अधुरी पंक्तियाँ याद आती है..
यकीनन!
याद आते हो तुम भी, जब बिते शहरोंकी सड़के याद आती है..
-