Vallabh Suryavanshi   (©chi_koo)
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Joined 29 July 2017


Joined 29 July 2017
17 SEP 2022 AT 1:26

गुज़रते वक्त के साथ
गुज़रना सिखना है..
उम्र के बढते सवालोंके साथ
चैन से सोना सिखना है..
युं तो कई किरदार निभा लेते है
अपने आप को असलमें जानना सिखना है..
दिन तो निकल जाएगा भीड़ में
रातोको अकेले काटना सिखना है..
और,
लम्होके साथ लोग भी परछाई बनते नज़र आएंगे,
बस कुछ अपनो को मुस्कुराते हुए, अलविदा कहना सिखना है..

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8 AUG 2022 AT 2:02

कधी कुठली रात्र शिरते
विचारांच्या गर्दीत
डोळ्यातली झोप खुंटते
विचारांच्या गर्दीत ।।१।।

स्वप्न सजीव भासतात
विचारांच्या गर्दीत
भास सारे भयावह पटतात
विचारांच्या गर्दीत ।।२।।

जुने दुखणे मग टुचते
विचारांच्या गर्दीत
टुचते जरी, जवळीक साधते
विचारांच्या गर्दीत ।।३।।

नवे चेहरे नकोशे होतात
विचारांच्या गर्दीत
गर्दीत देखील एकटे वाटते
विचारांच्या गर्दीत ।।४।।

कुणा सांगू शल्य पुराणे
विचारांच्या गर्दीत
यशोगाथा ही शून्य शोभतात
विचारांच्या गर्दीत ।।५।।

रात्र अशी ही दहन होते
विचारांच्या गर्दीत
द्वंद्वात, रावण वा राम जिंकतो
पहाटेच ठरवतो, विस्तवातल्या राखरांगोळीत ।।६।।

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31 JUL 2022 AT 0:09

अब युंही सपनों में
समंदर की गुंज सुनाई पड़ती है..

फोन की अलार्म टोन भी
लोकल की अनाऊंसमेंट सेट कर रखी है..

मेरा एक दोस्त हमेशा कहता था-
मुंबई को जिसके दिल ने पकड़ लिया,
मुंबई उसको कभी छोड़ती नही है..

सच ही है..
कभी कभी, तुमसे ज्यादा, मुझे
उस शहर की याद आती है।

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19 JUN 2022 AT 17:16

शहर, जो छुट गए पीछे..
आज उनकी सड़के याद आती है..

जो चेहरे दिखते थे हरदफा़,
आज उनकी शख्सियते याद आती है..

मंज़र देखे थे कितने वहाँ, कितने कदम दोहराए थे..
अधुरे किसी सफर की, वो अनछुई राह याद आती है..

कुछ नुकीली, कुछ मिट्टी सी, कुछ तेज़..
कुछ सड़के थी बारीशी, जो अब भी मानो बुलाती है..

सड़के चाहे हो जैसी, या एक जैसी,
हर शहर का ईत्र बन जाती है..

कभी मंज़िलों की याद दिलाती थी वो..
मुकाम हासील करनेपर वही सड़के याद आती है..

एक और मुलाकात उधार थी जहाँ, वो अधुरी पंक्तियाँ याद आती है..
यकीनन!
याद आते हो तुम भी, जब बिते शहरोंकी सड़के याद आती है..

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10 MAY 2022 AT 22:10

मयखानों से लेकर भरी सड़कोंपर,
ईश्क़ के मरीज़ हजार है..
जितेजी मरे हुए सलाहगार और उनकी "तरकीबों की किताबे",
बाज़ारों में बेशुमार है..

ऐसे हालात में तुम अपना किरदार निभाते रहना..
ऐसे हालात में तुम अपना हाथ थमाए रखना..
मयखाने.. सड़के.. तरकीबे.. किताबे.. सब ठिक है..
बस्स, ईन सलाहगारों की सलाहों को झुठा साबीत करना..

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3 MAR 2022 AT 19:00

शहर उनके ईत्र से महक रहा हो।
शाम के दिये हवाओं में घुल गए हो।
सागरतट की रेत, हर कदम उनका सिंचती हो
मानो, जैसे गुदगुदाकर सिकुड़ जाती हो।
उनकी हँसी..
बस्स् उतनी ही एक धुन, लहरों-तरंगों सी गुंजती हो।

या.. युँ कह दो ये सब एक सुनहरा सपना हो..
सब अच्छा लगता है।
अबसे, ये शहर, सिर्फ उनका तलबगार रहता है...

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8 JAN 2022 AT 15:09

कहानियाँ..
..जब तक अंगड़ाइयाँ ले
तब तक ज़ायकेदार लगती है..

..जब करवटें बदलने लगे
तब एक इम्तिहान लगती है..

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26 DEC 2021 AT 0:48

असे असंख्य हिवाळे सरले जरी
तरी तो एक हिवाळा कधीही गारठणार नाही..

कवितेतील नायिकाच साक्षात समोर!
अन् माझी, ओठात गोठलेली कविता.....

आठवणींमधून हा scene कधीच हद्दपार होणार नाही!

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26 NOV 2021 AT 14:43

मुंबई...
ये वह आँचल था, जो सबको अपना लेता था..
लेकीन वक्त बड़ा कठीन था..
कायरों के हाथो लगा, वीरों का हथीयार था..

मृत्यू खड़ी सामने, हर साँस मानो आखिरी थी..
कुछ कड़ियाँ छुट गई अपनोंकी, तो कुछ बेरहमी से काँटी गई..

शहीद हुए हम सबकी खातीर, कुछ हस्तीयाँ ऐसी भी थी..
झेल गए थे गोली वे सब, जिनकी वर्दी खाकी थी..

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15 SEP 2021 AT 12:10

ना सुकूनी शाम है,
ना नदी है, ना लहर
तुम बिन...
घर, तो है; लेकीन
चुभता है ये शहर

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