वैभव   (वैभव)
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I never try to copy anyone because I m already a masterpiece....
Joined 9 June 2017


I never try to copy anyone because I m already a masterpiece....
Joined 9 June 2017
13 JAN AT 20:18

बेख़बरी में वे गली, रास्ते व नुक्कड़ नाकाम हो गए,
एक दूरी से आने वाली तेरी खनक सुनसान हो गए,
जहां से कभी सब कुछ देख लिया करता था,
आज आंखों को लाख टटोलने के बाद भी,
एक परछाई के दिखने की उम्मीद तक नज़र नही आती...।

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13 JAN AT 20:14

सोच के निकला था कहने को ये बात,
की,
नीलकुरिंजी सरीखे कपड़े में लिपटी तुम,
जब धीमे-धीमे अपने कदमों से हम दोनों के बीच के फासले को कम कर रही थी,
आमतौर पर बक-बक करने वाला मैं, मौन था,
मानो "मिस्र की हेलेन" साक्षात सामने,
और उसपे मदहोश करने वाली मोगरे की खुशबू,
इस कदर दीवानगी बरसा रही थी,
की कद्रदान के साथ-साथ आसपास खड़े जाहिलों का भी भला हो रहा था,
और गहरी आंखों का वर्णन तो अत्यंत कठिन है,
क्योंकि जो उस रोज डूबा था, आज तक बाहर आने की कोशिश न कि, न आगे इच्छा है.....।
("स्मरण और स्मृति" से मोहब्बत, एक अनूठा एहसास)

(उस रोज की घटना है जब घर आने में देर हो गई थी उनको)

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22 FEB 2023 AT 12:12

जब दुनिया के साथ साथ अपने भी आपको कमज़ोर समझने लगें तब आपका जीतना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
Thank you Deepak Sir for this reminder...

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12 APR 2022 AT 21:14

She came while whispering with the winds and I wished to come in her way,
Her elegant curly glossy heavenly plaits rolled down her cheeks like a creeper on the walls of my village,
She uttered something uncanny but still I went crazy by undecoding it,
I know she is not mine but still I have the pleasure to be in her vicinity,
I can't coerce her to be mine as her denial is my novel appetite.....

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4 FEB 2022 AT 23:22

ज़ुल्फों को सुलझाती उंगलियों से कभी आह नही आई,
मेरी शायरी सुनते कभी तेरे होठों से वाह नही आई,
पन्नों पर तुम्हे उतार उन्हें बर्बाद कर दिया मैनें,
औरों की तरह मैनें भी भरपूर लानत कमाई।— % &

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24 JAN 2022 AT 20:05

क्या मेरा है क्या तेरा है,
बस यही लड़ाई और इतना ही बखेड़ा है।

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18 JAN 2022 AT 22:21

हुड़दंग की होली और हाहाकार है,
अराजकता के जनक हमारे सलाहकार हैं,
बुझते-जानते इनकी शरण मे बैठे हम,
निठल्लों की फौज चली तोड़ने पहाड़ है।

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18 JAN 2022 AT 15:52

ना अभिमान से,
ना हिन्दू-मुस्लिम के ज्ञान से,
भारत चलेगा तो सिर्फ और सिर्फ संविधान से।

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24 SEP 2021 AT 0:18

मेरी ग़ज़ल से निकली 'आह' से,
तेरी खूबसूरती की 'वाह' तक,
फ़साने हज़ार बन जाएंगे,
कोई कदम तो बढ़ाए मेरी 'राह' तक...।

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23 SEP 2021 AT 16:02

हरारत-ए-इश्क़ ने जिस्मों-जान नाकामयाब कर दिया,
वरना हम भी अपने जनाज़े में शरीक़ हो पाते...।

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