ये कैसी मोहब्बत है उसे हमसे, चैन से जीने भी नही देती है, चैन से मरने भी नही देती है, या तक तो चलो ठीक भी था, पर कंभखत मोहब्ब्त है उसे हमसे, ये कबूल भी तो नहीं करती है।
कभी कभी मन में कुछ ऐसे खयाल उमड़ आते है, जिनको समझाने में अल्फाज भी कम पढ़ जाते है, खुद ही में उनको समझा जा सकता है, खुद ही में वो जज्बात कहर-ए-सितम ढाते है।