बैंठे तो हम ट्रेन मे है,
केहने को मंजिल एक है, केहने को नहीं!
पहुचणा तो सभी को है,
पर मदत किसी को किसी की नही!
मोबाईल हाथ में पकडे बैंठे है सब,
गर्दन खाली करके रो रहे है सब!
सामने वाले को पुछ भी लु हाल,
पर बिना मतलब बाते करणा अब दुनिया को आदत नही!
चिल्ला दु जोर से के बरबादी है ये,
अपनी मतलबी खुशी में दुनिया दुर हो रही है!
जैसे पट्रीयो के बिना ट्रेन कुछ नहीं,
वैसे ही दोस्त-परीवार के बिना हम भी कुछ नही!
इस दुनिया में रीश्ते बनाना सिख लो,
क्या पता जितेजी जिंदगी समशान ना बन जाए!
तो चलो आज पुछते है,
आज मिले क्या बात करने?
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