मुझे पाने की ज़िद
तुम मत करो,
किसी की लात मारी हुई
मोहोब्बत हूँ मैं…..!!!
और….
सफ़र में कहीं तो धोखा खा गए “हम”
जहाँ से चले थे वहीं आ गए हम….!!!-
‼️मैं अब मुझसे मिलने जाता हूँ‼️
के….
मोहोब्बत के बाद
मोहोब्बत का ख़ौफ़ जी रहा हूँ मैं,
तुमसे बिछड़ कर जी रहा हूँ
यानी मौत जी रहा हूँ मैं….!!!-
वो लफ़्ज़ों को मेरे सुनता रहा,
और मेरी आँखों में मेरा हाल था।
हाथ पकड़ा मगर थामा नहीं,
ये रिश्ता भी क्या कमाल था।
सोचा था के आराम आएगा मगर,
उसे लिखना भी जी का जंजाल था।
सुबह वो सारी तस्वीरें जलाऊँगा,
रात को यही एक ख़्याल था।
इश्क़ था,ज़ुनून था और जलवा था,
ज़िन्दगी का हर पहलू लाल था।
वो शख़्स मेरा क्या लगता है,
हर ज़ुबं पे अब एक यही सवाल था।-
कब कहा है गले लगाओ मुझे
एक नज़र देख कर तो जाओ मुझे,
देखो आज मैं खेलने नहीं आया
अब ज़रा जीत कर दिखाओ मुझे....!!!-
किसी ने क्या ख़ूब कहा था....
प्यार करना ग़लत नहीं,
व्यक्ति की आदत हो जाना ग़लत है....!!!
मैं इस बात को जड़ से ख़ारिज करता हूँ।
क्यूँकि,
व्यक्ति की आदत तभी होती है
जब उसे व्यक्ति से बेपनाह प्यार होता है,
और जहाँ बेपनाह प्यार हो जाए
वहाँ आदत हो जाना जायज़ लाज़मी होता है।-
कहाँ जोड़ पाएँगे हम धड़कनों को
के दिल की तरह हम भी टूटे हुए है,
ये माना के तुमसे ख़फ़ा है ज़रा हम
मगर ज़िंदगी से भी रूठे हुए है....!!!-
मैं आज के समय का प्रेमी हूँ....!!!
तुम्हारा जोगी तो हो सकता हूँ,
परन्तु
दास नहीं.....!!!-
किसी भी सम्बंध की जब शुरुआत होती है
तो समय,परिस्थिति,लोग और सभी चीजों का घटित होना
बेहद लाजवाब होता है,
मगर....
वही सम्बंध जब टूटता है
सब बिखर के रह जाता है।
और वही सब कुछ जो बेहद लाजवाब लगता था,
मानो साँप के ज़हर सा ख़राब लगता है....!!!
सोचिए....
कितना डरावना होता है,
“है” का “था” हो जाना....!!!-
पूरा दिन तो समेट के रख लेता हूँ
“ख़ुद को”
मगर....
रात आते ही नहीं बचा पता बिखरने से
“ख़ुद को”-
अक्सर
रिश्ते ख़राब कर देती है ख़ामोशी,
सुनो...
जब भी मन किया करे
तुम मुझसे लड़ लिया करो....!!!-