कितना हताश है ये जीवन जिसमे जीने की चाह नहीं जाना तो था बहुत आगे पर अब दिखती कोई राह नहीं घुटन सी होती है हर पल बाकी अब कोई आस नहीं कितना हताश है ये जीवन जिसमे जीने की चाह नहीं
हमारी बातों ही बातों में जब आते थे छुप छुप कर मिलने तुम मुझसे सर्दियों की रातों में खो जाया करते थे हम इक दूजे कि आँखो में जब चलते थे हम हाँथ थाम कर इन राहों पर बरसातों में बातें उलझ कर रह जाती थी हमारी बातों ही बातों में।