Urdu_Hindi Poetry   (Aamir Shaikh)
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Joined 8 April 2018


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16 APR AT 19:38

इश्क़ में महबूब के हर एक नाज़ उठाने होते हैं
कभी माथा चूमना, तो कभी पाँव दबाने होते हैं,

एक दर का बनाया हुआ मुस्तिक़ल मुजावर हूँ
हम फ़क़ीरों के घर नहीं बल्कि आस्ताने होते हैं!

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13 APR AT 18:24

दुनिया करे तो करे लेकिन आप ना करें
एक दिल से दो नामों का जाप ना करें,

ये संगीन है, और वो भी बहोत ही संगीन
पश्चाताप करें, और फिर ये पाप ना करें!

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10 APR AT 15:45

तुम गले लगो तो मैं ख़ुशी से ईद मनाऊँगा
वरना इंतिज़ार में घड़ी से ईद मनाऊँगा,

जानाँ तुम फ़ैसला कर लो मेरे मुंसिफ़ तुम हो
तुम जिस से कह दो, मैं उसी से ईद मनाऊँगा,

तेरे होंठ, तेरे गाल, तिरी कमर, तेरे बाल,
अगर इज़ाज़त हो, इन सभी से ईद मनाऊँगा,

अपने एक बोसे से तुम्हें कर दूँगा शीरीं
इस हूनर, इस जादू-गरी से ईद मनाऊँगा,

तेरे तमाम ग़मो का मैं सदक़ा उतार लूँगा
मैं तीरी आँखों की हँसी से ईद मनाऊँगा,

मेरे हमराज़ तू सेवईयाँ खिला हाथों से
मेरी ये जिद्द है कि मैं तभी ईद मनाऊँगा।

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25 MAR AT 9:02

वतन से लोग और लोग से वतन बनता है
हर रंग को खिला कर रंग-ए-चमन बनता है,

ज़ाफ़रान के साथ रंग-ए-सब्ज भी ज़रूरी है
तमाम गुल हँसे तब रंग-ए-अंजुमन बनता है।

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23 MAR AT 20:21

मुनासिब यूँ आवाज़ उठाया जाता
ताज उछाला, तख़्त गिराया जाता,

ऐसा होता ज़िंदगी का ताना-बाना
मज़बों को गमलो में उगाया जाता,

अगर न होता खा़दी तो यक़ीं मानो
एक सफ़ में सबको बिठाया जाता,

वज़्म सजा के दिल टूटे लोगों का
फिर बहस, वफ़ा पे कराया जाता,

काश रोटियाँ सर पटकती ज़मीं पे
और चाँद देख भूख मिटाया जाता!

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20 MAR AT 19:12

वह अपनी तंगहाली को बड़ी चालाकी से छुपाता है ,
फ़ाक़े की सूरत में भी वह फ़ख़्र से रोज़ा बतलाता है !

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19 MAR AT 16:58

कहीं ग़ुर्बत से फ़ाक़ा, कहीं ईमान से रोज़ा,
कोरे दस्तर-ख़्वान पे इफ़्तार की तैयारी है।

کہیں غربت سے فاقہ کہیں ایمان سے روزہ
کورے دستر-خوان پہ افطار کی تیاری ہے

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2 MAR AT 18:24

मैं रस्म-ए-जफ़ा पे शायरी करता हूँ
मैं इश्क़-ए-वफ़ा पे शायरी करता हूँ,

दो दिल टूटने से क्या क्या होता है
उस घाटे-नफ़ा पे शायरी करता हूँ,

हर रंग के हर भेद मौजूद है जहाँ पे
उस दुनियां ज़हाँ पे शायरी करता हूँ,

जानता हूँ ख़ादी के अंदर का ख़ादी
मैं सियासी दग़ा पे शायरी करता हूँ,

पाज़ेब लिखता हूँ कंगन लिखता हूँ
घूँघट और हिना पे शायरी करता हूँ,

लब-ओ-रुख़सार, लहज़ा-ओ-अदब
उनकी हर अदा पे शायरी करता हूँ!

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17 FEB AT 19:57

बाद-ए-इशा तुम धड़कनों से अज़ान देना,
मैं बा-वज़ू हो के पाबंदी से चला आऊँगा!

بعد عشا تم دھڑکنوں سے اذان دینا
میں با وضو ہوکے پابندی سے چلا آؤں گا

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16 FEB AT 20:27

थरथराते होंठ से जब तुम मेरा नाम कह जाओगे,
मुकम्मल दिन बन जाएगा, मेरी रात कट जाएगी।

تھرتھراتے ہونٹ سے جب تم میرا نام کہہ جاؤں گے
مکمل دن بن جائے گا, میری رات کٹ جائے گی

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