Udeesha Tiwari   (Udeesha Tiwari (Freyja))
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Write your soul off..
Joined 30 August 2017


Write your soul off..
Joined 30 August 2017
6 SEP 2023 AT 5:27

Just to be ideal, we push our love to fit certain standards, where it cripples and dies, with time. Raw love thrives.
Love breathes freedom.

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6 NOV 2022 AT 12:09

ये जग सारा घूम-घूम कर
देखे कितने सारे रंग।
पीले, नीले, लाल, सुनहरे,
चटकीले भड़कीले रंग।
इन रंगों को परे हटा
भाए मुझको सादे-सादे,
बुद्ध बनें, जो आँखें देखें
शांति पाने वीले रंग।

नज़र फेर जब तुमको देखा
सब कुछ पाया एक जगह।
फिर तो जब-जब तुमको देखा
देखा मैंने इन्द्रधनुष।
इन्द्रधनुष उनही रंगों का
जो भाए मुझको सादे-सादे,
बुद्ध बनें, जो आँखें देखें
शांति पाने वीले रंग।

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26 OCT 2022 AT 12:50

पटरियाँ और सड़क आजू-बाजू,
गुमसुम, पड़ी रहती हैं
इंतज़ार में कि कब एक सुंदर घटना घटित हो।
फिर कोई ट्रेन पर सवार, कौतुहल से बाहर को देखे
और कोई साहसा उतर आए उस सड़क पर
ताकि पटरियाँ और सड़क दौड़ सकें, साथ-साथ
बचपन की खिलखिलाती सहेलियों की तरह...

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1 MAR 2021 AT 13:53

यह पलाश के फूलों के जंगल,
शिवनाथ के तट पर बिखरे फैले|
हाथ लिए अनमोल खजाना,
आँख लिए एक नया सपन,
ट्रेन की खिड़की से टकटकी लगाए
जोड़ी गई मेरी वो यादें,
कलम चाँद में डोब-डोब कर,
रात की काली चादर पर
तारों के शब्द उकेरूँगी
बिखरा-बिखरा फैला-फैला
मन मैं आज समेटूँगी|

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1 MAR 2021 AT 10:12

: कैसे हो? कहाँ हो? किस काम में हो गुम?
बड़े दिन गए कि तुमसे बात न हुई
तुम जागते हो रातों को, जानता हूँ मैं
किस दिन में जी रहे हो जिसकी रात न हुई
खैर, ये बताओ, तुम्हें नींद नहीं आती?
: रातें मारती हैं जब अपनी बेरहम चाबुक
यादों की जड़ी कीलें तब मन में चुभती हैं
तकिये में छिपाकर, दफ़्न कर रुलाइयाँ अपनी
सिसकियों की कड़ी, आँसू की झड़ी, रुक न पाती है
खैर, बताओ, मौसम कैसा है?
: मानो तो, मेरे दोस्त, ये मुश्किल सवाल है
भीतर या बाहर, तुमने पूछा ही नहीं!
वैसे दोनों ही के मौसम, एक ही से हैं
कभी धूप, कभी छाँव, बारिश कभी-कभी
तन की तपन,आज कल, मन बुझाती है
मन को जलाती हैं अब बारिशें सभी
ख़ैर, तुम ठीक तो हो?
: पता नहीं! तुम?
: पता नहीं...
: ख़ैर...
: ख़ैर!

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11 FEB 2021 AT 19:24

उगते सूरज पर कालिख़ पोत दी जाएगी
कि वो स्याह रहे अपने अस्त तक;
जड़ दिए जाएँगे होठों पर बड़े-बड़े ताले
जिनके बोझ तले दबा दी जाएँगी
सवाल पूछती मुखर आवाजें;
तारों में गूथ दी जाएगी जीभ
ताकि समझ न पाए कोई - वेदनाएँ
सूरज तब भी उगेगा, काला ही सही;
बंद ताबूतों से आएँगी, घुटी-घुटी ही सही
संक्रांति को पुकारती मुखर आवाजें;
और वेदनाओं को ज़रूरत ही नहीं शब्दों की,
वो आँखों से पिघल कर बह जाएँगी
पर बोलना बंद नहीं करेंगी -
सूरज की किरणें, आवाज़ें, वेदनाएँ...

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9 FEB 2021 AT 19:26

शब्दों को उधेड़-बुनकर कई पद्य लिख गई
कलम से जो बात निकली, बड़ी दूर तक गई
सब कुछ कहा मगर वो बात ना कही
संकोच के तले अपना दम घोटती रही
अब आज जब निकाली, सचमुच जो बात थी
सब गुत्थियों की चाबी मेरे ही हाथ थी
बातें बना-बनाकर बवाल कर दिया
पहले ही कह देती, इतनी ही तो बात थी|

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2 FEB 2021 AT 18:03

बीते मुझ ही में दिन
रातें मुझ में ही बीत गईं
चलते हुए जब गोलमगोल
यहीं पर सदियाँ रीत गईं
तुम्हें खोजा किये खुद में
मिले ना तुम, मिले बस हम
तब जानी ज़रा सी बात
तुम्हीं में तुम, हम ही में हम|

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22 APR 2020 AT 13:20

महाभारत पुरुषों के 'तिरिया चरित्र' की कथा है|
नारियाँ तो सभी स्वाभिमानी थीं|

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7 APR 2020 AT 22:29

हो बिंदु मात्र,
पर देख रहे हो
धरती का कोना-कोना
याद उसे मैं करती हूँ
उस तक पहुँचो तो बतला देना

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