: कैसे हो? कहाँ हो? किस काम में हो गुम?
बड़े दिन गए कि तुमसे बात न हुई
तुम जागते हो रातों को, जानता हूँ मैं
किस दिन में जी रहे हो जिसकी रात न हुई
खैर, ये बताओ, तुम्हें नींद नहीं आती?
: रातें मारती हैं जब अपनी बेरहम चाबुक
यादों की जड़ी कीलें तब मन में चुभती हैं
तकिये में छिपाकर, दफ़्न कर रुलाइयाँ अपनी
सिसकियों की कड़ी, आँसू की झड़ी, रुक न पाती है
खैर, बताओ, मौसम कैसा है?
: मानो तो, मेरे दोस्त, ये मुश्किल सवाल है
भीतर या बाहर, तुमने पूछा ही नहीं!
वैसे दोनों ही के मौसम, एक ही से हैं
कभी धूप, कभी छाँव, बारिश कभी-कभी
तन की तपन,आज कल, मन बुझाती है
मन को जलाती हैं अब बारिशें सभी
ख़ैर, तुम ठीक तो हो?
: पता नहीं! तुम?
: पता नहीं...
: ख़ैर...
: ख़ैर!
-