tushar singh 'तुषारापात'   (तुषारापात®)
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Joined 22 March 2018


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चढ़ते सूरज को मिलता है एक लोटा जल
दरिया आता है उतरते सूरज को संभालने मगर

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चिमनियों से काले हुये बादल
बदले में क्यों चूल्हे बुझा रहे हैं

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मूर्खों का राजा होने के लिये बुद्धिमानी की नहीं,
मूर्खता की सबसे बड़ी बात करनी होती है।

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हुक्मरान से पूछा
इतने बीमार क्यों बढ़े
उत्तर में
ठीक होने वालों की अधिक संख्या पाई

(पूरी कविता अनुशीर्षक में 👇)

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नफ़रत के छज्जे से नहीं दिखती है।

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रात की रेल जब पटरी पे आती है
बेटिकट आँखों से नींद रूठ जाती है

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ज़िंदगी प्रीपेड प्लान बनी है और
साँसों के रिचार्ज हैसियत से बाहर हैं।

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सातों आसमानों में तेरे
रत्ती भर न मिलती थी

चिढ़कर छीन ली तूने
सीने में मेरे, जो
ज़रा सी हवा चलती थी।

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बुरा है बहुत तो भला करिये
बदल जायेगा जान लीजिये

वक़्त को भी आराम चाहिये
धूपघड़ी को जरा छाँव करिये

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सबसे उम्दा कारीगरी से, बनाया तूने इंसान को
अदने वाइरस से इसका मरना, ख़ुदा तेरी तौहीन है

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