Tauheed Shahbaz  
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SM Anwarut Tauheed
Shakila Khatoon's Son
passion4pearl@gmail.com
Published Author
Joined 7 November 2016


SM Anwarut Tauheed
Shakila Khatoon's Son
passion4pearl@gmail.com
Published Author
Joined 7 November 2016
17 OCT 2022 AT 1:47

आख़िरी सांस आख़िरी आंसू
देखिए पहले आता है कौन

मेहमान तो कबके चले गए
अबके दिल से जाता है कौन

मैं तो यूं भी उदास रहता हूं
खाली दिल घर बनाता है कौन

कारोबारे गम दुनिया नहीं लेकिन
दिल तोड़े बगैर यहां से जाता है कौन

कुछ खूबसूरत सा चाहिए जिंदगी को
देखूं अपनी सदा सुन पाता है कौन

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15 MAY 2022 AT 14:38

मुझे यकीं है भूला दिया गया होगा
किसी का घर बसा लिया गया होगा

गलत नहीं मेरे साथ जो हुआ लेकिन
परेशान हूं उसके साथ क्या हुआ होगा

उतर गया जो दिल से गलत नही लेकिन
लकीरों ने और किसके साथ यूं किया होगा

कोई कब तक और कितना मातम करे
धूप ने मुसाफ़िर को कहीं बिठा लिया होगा

मैं कैसे जल सकता हूं और की तकदीर पे
जो नसीब ने रकीब को गले लगा लिया होगा

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10 MAY 2022 AT 9:01

एक नाम ज़रूर होगा
इस सफ़र का
मेरे लिए सफ़र सिर्फ़ एक सफ़र है
पेड़ सिर्फ़ एक पेड़
फूल सिर्फ़ एक फूल
रास्ते ने ओढ़ रखी है
मंजिल की इक चादर
मुसाफिर रस्ते पर आता जाता है
काश वो भूल ना पाता कभी भी
रस्ते जिंदगी में जो याद दे जाते हैं

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9 MAY 2022 AT 8:59

करना ऐतबार तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं
कोई नहीं है और तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं

हर तरफ़ रंजिश हर तरफ़ नफ़रत, अजीब है वहशत
दिल है मिरा कमज़ोर,तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं

नफ़रतों से बहुत दूर एक नई दुनिया की खोज में
अच्छाई है मेरा इंतज़ार, तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं

पहचान हो ना सकी सो मात खाते रहे हम
अभी काबिल नहीं हम, तुम्हारी दुनिया से कट रहे हैं।

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1 MAY 2022 AT 22:45

तुम्हे जीने की सुहूलत तुम जियो
हमारा तो मरना भी गंवारा नहीं

चाहे जो समझना चाहें समझ लें
किरदार अपना कतई आवारा नहीं

टूट जाते हैं यह ज़िन्दगी संवारने में
हम लोगों का मुश्किल सहारा नहीं

भेदभाव सियासत में गहरे धंसा हुआ
मुहब्बत का हर किसी को इशारा नहीं

जिंदगी बड़ी आसान होती थी हमारी
आसानी का भी हमारे कहीं गुज़ारा नहीं

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1 MAY 2022 AT 16:31

एक किरदार ही बन रहें हैं हम तो
कोई कहानी नहीं हो सकें हम तो

हमारे हाथो में डोर नहीं रखी हमारी
चाहते कुछ होते कुछ जा रहें हम तो

मर्जी थी नही सफ़र ज़रूर मगर था
कल के लिए कुर्बान होते गए हम तो

कितने जंगलों को शहर हमने कर दिया
इसी शहर में मगर कितने बेगाने हम तो

ख़्वाब ताबीर तलक पहुंचाने का ज़िम्मा
हर ख्वाब से बेदखल हैं लेकिन हम तो

रात के खाने में कितनी बार भूख़ खाया है
नहीं गिने जाते फिर भी कहीं हाय हम तो

कल भी मज़दूर थे आज भी हम मज़दूर
हक की बात सुनो हक से भी दूर हम तो

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30 APR 2022 AT 17:38

सूना है आंगन मेरा दरख़्त के बाद
जद में थी यह जान दरख़्त के बाद

तमाम जमीन पे कहीं जगह ना होगी
एक साया भी ना होगा दरख़्त के बाद

ऊब चुका है दिल एक बहाना है दुनिया
बहुत बदल चुका अंदाज दरख़्त के बाद

कितनी याद जुड जाती है एक मुहब्बत से
मुहब्बत ही बदल जाती है दरख़्त के बाद

इसमें ज़िक्र बन गया इक ठोकर का अब से
मानो हो गई कहानी पत्थर दरख़्त के बाद

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28 APR 2022 AT 14:03

कितना लंबा होता है मेहनत से भरा एक दिन
कितनी छोटी होती हैं क़िस्मत से भरी हुई रेखाएं

दंगे ने मेरा तो सबकुछ छीन लिया इस बार
भाईचारे की और कितनी मिलेंगी हमें सज़ाएं

सदियों साथ मिलकर रहें कोई दिक्कत नहीं आई
लोगों को बांट कर क्या वो बांटेंगे दरम्यान हवाएं

क़िस्मत पे फक्र था कभी हर इक शख़्स को
नफ़रत हिंसा से जख्मी दुनिया मांगती हैं दुआएं

मअसला जीने का जो कभी था नहीं आज सामने है
जीओ और जीने दो भूल कर कहां आ गए हम वफाएं

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27 APR 2022 AT 13:03

महफ़िल में कब जगह पाता हूं मैं
बस जाता हूं लौट के आ जाता हूं मैं

तेरे असल इरादों को नहीं ज़िंदगी
अपने हैसियत में पहचान पाता हूं मैं

दुख अपने अपने सबके इकठ्ठे होते हैं
दुखों की ज़द में एक दिन आता हूं मैं

दो ही चीजें अनोखी मुहब्बत में बनी
आसमां जमीं सा कोई नहीं पाता हूं मैं

मुझको आंखों में लिए फिरे वो शख़्स
ख़ुद के लिए तसव्वुर प्यार चाहता हूं मैं

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26 APR 2022 AT 14:55

पहले मिलता था बात होती थी
सिर्फ़ एक ख़त पड़ा है नाम यहां

दुख बिछड़ने के तुम क्या जानो
तुमने तो देखा नहीं दुनिया जहां

मुझ को ये मालूम नहीं था दोस्त
बिचड़ने वालों को ढूंढते हैं कहां

जिसे देखने की हसरत जीना थी
उसे आंखें देख सकीं कितनी दफा

दिल मुजरिम नहीं इस अदालत में
दुनिया का कारोबार निकला बेवफा

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