The best children come from the womb of the bestest woman❤
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क्यों इतनी रंजीशे हैं
क्यों इतने सवाल है
क्यों मैं क्यों तुम
क्यों हम नहीं?
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तुमसे अच्छी तो तुम्हारी बेवफाई निकली
रोज़ अपनी याद दिला जाती है
और एक तुम हो
ना जाने कहां चले गए हो ये तन्हाई दे के!-
कैसे कर लेते हो तुम ये?
उड़ते परिंदे के पर काटने से पहले
क्या एक भी बार नहीं सोचा तुमने
एक धागे के भांति सुई जब अनजाने में चुभ जाती है
तो कितना जख्म दे जाती है
ना चाहते हुए भी, कहती हूं तुमसे
आखिर तुम तो इंसान थे
कैसे कर लिया ई सब?
हमरी अम्मा कहत है कि शहरी बाबू का दिल बहुत बड़ा होत है
पर आज पता चला कि तुम्हरा दिल तो हमरी मिट्टी की कुटिया से भी छोटा निकला
ना चाहते हुए भी, ई सवाल पूछती हूं खुद से
क्या तुम वाकई इंसान थे?
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जितना है उतना काफी है
क्यों ज्यादा की तलाश में मारे फिरते हो
चलो आज थोड़ा रुकते हैं
जितना है उतने पे गुरूर करते हैं
अभी बहुत मुकाम हासिल करने बाकी है
चलो आज थोड़ा आराम करते हैं
कल फिर अपनी कश्ती सजाएंगे
कल फिर अपना परचम लहराएंगे
कल फिर हरियाली आएगी
कल फिर से दीप जलाएंगे
कल फिर समुद्र के किनारे मिट्टी के घर बनाएंगे
कल फिर पक्षी के भाति गंगा में गोते लगाएंगे
चलो आज थोड़ा विराम लगाते हैं
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Hum logon ne yeh bahut bar suna hota hai ki "Zindagi Hamesha Second Chance Nahi Deti"
Per Kabhi Kabhi Aisa Bhi Hota Hai ki "Zindagi hamein bar bar mauka deti hai per hum hi Khud Ko badalna nahi chahte"-
किसकी राह देखते हो
जो चला गया क्यों उसकी तरफ मुड़कर देखते हो
देखना ही है तो इस पतझड़ को देखो
जो मुरझा कर भी मुस्कुराए
उस नजारे को देखो-
जिंदगी बहुत हस्त रेखाओं का मिलाप होती है,
कभी हंसना सिखाती है तो कभी रोने को मजबूर कर जाती है॥ जिंदगी एक ऐसी कशमकश है इसके आगे चलो तो लोग पीछे छूट जाते हैं अगर पीछे चलो तो समय आगे निकल जाता है॥ये एक ऐसा बंधन है कसम और वादे किए बिना भी निभाना पड़ता है,कभी इसमें सावन आता है तो कभी पतझड़!कभी होली के रंगों की तरह सब कुछ घुल मिल जाता है तो कभी दिवाली के पटाखों की तरह सब तवा हो जाता है॥ इसमें समय के ऐसे बाण चलते हैं कभी रामायण की सीता बना दिया जाता है तो कभी महाभारत की द्रौपदी॥हे मित्र!ये वादा रहा कि मैं कर्ण की तरह अपनी दोस्ती पे खरा उतरूंगी॥
तुम्हारी मित्र,
तन्वी-
अभी कल की ही बात थी
आई कुछ ऐसी रात थी,
वो सपने में ही पूछ बैठी
क्या मैं वाकई गुनेगार थी!-
काश अब भी कोई रात को लोरी सुना कर सुलाने वाला होता,
काश आज भी ये दिल सितारे गिनने को बेचैन हुआ होता,
अब बस ये अंधेरा है और इस अंधेरे में खुद से सवाल-जवाब करती हुई मैं,
काश आज भी वो बचपना मेरा होता और उस बचपने अंदाज में खिल खिलाती मैं-